रामायण कथा हिंदी - रामायण की कहानी हमारी जुबानी [Part 3] - रामायण लंका कांड

रामायण की कहानी हमारी जुबानी - रामायण कथा हिंदी – रामायण [ Part 3 ]



आज इस लेख में आपको रामायण कथा हिंदी में और रामायण की कहानी का [Part 3] बताने वाले है. जिसमे लंका कांड रामायण, लंका दहन रामायण और रामायण लंका दहन, रामायण युद्ध, रामायण लक्ष्मण शक्ति, रामायण मेघनाथ वध की कथा बताएँगे. 


इसके पहले आपको रामायण की कहानी हमारी जुबानी का [Part 1] और [Part 2] बताया गया है जिसमे बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड और रामायण सुंदरकांड तक की रामायण शुरू से लेकर अंत तक बताई गयी है. 


उसीप्रकार [Part 1] रामायण कथा हिंदी में Ramayan Kisne Likhi Thi (रामायण किसने लिखा) और Ramayan Ke Rachyita Kaun Hai (रामायण के रचयिता कौन है) इन सवालो के जवाब दिए गए. 


रामायण की कहानी हमारी जुबानी का [Part 1] और  [Part 2] को आप निचे लिंक पर जाकर देख सकते है. 



तो आइये अपनी रामायण कथा हिंदी [Part 3]  की यात्रा सुरु करते है......!



रामायण युद्ध और रामायण लंका कांड की रामायण कथा हिंदी में जानेंगे



६. षष्ठ काण्ड लंकाकाण्ड :–



प्रभु श्रीराम द्वारा रामेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना एवं पूजा– पाठ के बाद श्री राम किसने समुद्र पार करके लंका पहुंच गई। सेना में समुद्र पार करके रावण की लंका के तट पर अपना डेरा जमाया। 


रामायण-कथा-हिंदी
रामायण कथा हिंदी


सारे लंका वासियों मैं डर का माहौल छा गया। लंका वासियों के मन में एक ही प्रश्न उमड़ रहा था , जिस सेना का अधिपति समुद्र में सेतु बांध सकता है वह कितना मायावी और बलवान होगा। जिसका मात्र एक दूत संपूर्ण लंका का दहन कर सकता है उसकी पूरी विशालकाय सेना लंका का क्या हाल करेगी। राम के सेतु निर्माण एवं सेना का लंका के तट मैं डेरा डालने का समाचार पाकर दशानन व्याकुल हो उठा। 


स्वर्णमई लंका की रानी मंदोदरी के समझाने पर भी रावण अपने अहंकार के हट मे अड़ा रहा । श्री राम की वानर सेना एवं सारे मंत्री गण लंका के सुबेल पर्वत पर डेरा जमा निवास करने लगे। 


अंगद महाबलशाली, पराक्रमी बालि का पुत्र और किष्किंधा नगरी का युवराज , श्रीराम का दूत बनकर रावण के राजमहल पहुंचा । अंगद राजभवन पहुंच कर रावण एवम लंका के सारे विद्वान मंत्री गण के समक्ष ऊंचे स्वर में रावण को श्री राम की शरणो में आने का संदेश देता है। रावण के भला बुरा कहने पर अंगद रावण को यह चुनौती देता है कि अगर उसके सभा का कोई भी व्यक्ति उसके पैर को जमीन से उठाकर दिखा दे तो वह प्रभु श्री राम के साथ अयोध्या वापस लौट जाएगा और कोई युद्ध नहीं होगा। एक-एक करके रावण के सभी मंत्री बाल आजमाने लगते हैं


सभी के पास तो होने के रावण आता है और जैसे ही वह अंगद के चरणों को उठाने के लिए झुकता है अंगद अपना पैर पीछे लेकर उसे श्री राम के चरणों में आने का संदेश देकर वापस सुबेल पर्वत लौट जाते है। 


श्री राम के सारे शांति प्रयास विफल हो जाने पर महायुद्ध शुरू हो जाता है। संपूर्ण वानर सेना में श्री राम जी की जय, लक्ष्मण जी की जय , महाराज सुग्रीव की जय के नारे लगने लगे। दूसरी ओर लंका के राजभवन में रावण में अपनी राक्षसी सेना बुलाकर, जाओ मेरे भूखे सिपाहियों जाकर चीर हरो स्वादिष्ट वानरों को यह कहकर सेना मे साहस बारा।


रावण की काली राक्षसी सेना आज्ञा माँगकर और हाथों में ,प्रचण्ड फरसे, , तोमर, साँगी (बरछी) , शूल, दोधारी ,उत्तम भिंदिपाल तलवार, मुद्गर ,परिघ और चट्टानो के टुकड़े खंड लेकर राक्षस चले।


रामायण-युद्ध
रामायण युद्ध


उधर श्री रामजी की और इधर दशाशन रावण की दुहाई बोली जा रही थी। हनुमान जी ने शंखनाद किया और युद्ध आरंभ हुआ ।राक्षस चटान के ढेर को फेंकते तो वानर उछलकर उन्हें पकड़ लेते और वापस राक्षसों की ओर चला देते।

रामायण-लंका-दहन
रामायण लंका दहन


श्री रामजी के प्रताप, प्रबल और वीरता से वानरों के झुंड राक्षसों के समूह को मसल रहे थे। राक्षसी सेना में डर का माहौल था। रावण की सेना को भयभीत देख सेना को बुलाकर डांट फटकार ने लगता है और उन्हें मारने की धमकी देने लगता है भयभीत सेना रावण से डरकर वापस रणभूमि में लौटकर वानरों पर जोरदार प्रहार करने लगते हैं।


हनुमान जी जो कि उस वक्त पश्चिमी द्वार पर मेघनाथ की युद्ध करते हुए जब अपनी सेना को भयभीत देखते हैं तब क्रोधित होकर वह जोर से गरज कर अपने विकराल रूप में आकर भारी भरकम चट्टान उठाकर दौड़ते हुए मेघनाथ के रथ के ऊपर फेंकते हैं जिससे करत टूट जाता है। मेघनाथ जमीन धड़ाम से गिरता है और उसके साथी की मृत्यु हो जाती है हनुमान जी के छाती के ऊपर अपना पैर रखकर उसे दबा दें यह देखकर मेघनाथ का दूसरा सारथी उसे दूसरी रथ में डालकर महल ले जाता है।


हनुमान राजभवन की ओर चढ़ाई कर देते हैं। इधर अंगद को जब पता लगता है पवन पुत्र हनुमान अकेले ही राजभवन की ओर चल पड़े हैं तब अंगद अपने दल के साथ किले के ऊपर से कूद कूद कर राजभवन की ओर बढ़ने लगता है।


हनुमान जी अंगद लंका में प्रवेश के बाद त्राहिमाम मचा दी जो भी राक्षस मिलता उसे पकड़ कर उठा उठा कर फेंक देते। एक राक्षस को दूसरे से मसल डालते हैं और सिरों को उकड़कर फेंक देते। जिन बड़े-बड़े सेनापतियों को पकड़ पाते हैं, उनके पकड़कर उन्हें प्रभु के चरणों मे फेंक देते।

प्रभु के चरणों में आने के बाद जामवंत काका उन्हें मुक्ति प्रदान करते। ब्राह्मणों , विद्वान का मांस खाने वाले वे नरभक्षी दुष्ट राक्षस परम गति पाते। 


श्री राम जी यह सब देख कर कहते हैं, अंगद और हनुमान किले में घुस गए हैं। दोनों वानर लंका को कैसे शोभा दे रहे है, जैसे मन्दराचल पर्वत से समुद्र को मथ रहे हों।


दिन बीत गया अगले दिन वानरों ने क्रोध और आक्रोश से दुर्गम किलो को घेर लिया। लंका में कोलाहल मच गया। अनीक सेना तरह तरह के अस्त्र-शस्त्र लेकर दौड़े और उन्होंने किले पर पहाड़ों के शिखर ढहाए और कब्ज़ा कर लिया।


जब मेघनाद ने कानो ने सुना कि फिर राम की सेना ने आकर किलो को घेर लिया है। तब वह किले से उतरा और डंका बजाकर उनसे युद्ध करने चल पड़ा। मेघनाथ क्रोध मे बाणों की वर्षा करने लगा। जैसेकी मानो बहुत से उड़नेवाले साँप आकाश से बरस रहे हो। जहाँ-तहाँ वानर सेना गिरते दिखाई देने लगे।


सारी वानर सेना को व्याकुल देखकर अंजनीपुत्र हनुमान्‌ क्रोध मे ऐसे दौड़े मानो स्वयं काल दौड़ रहा हो। हनुमान जी ने एक बड़ा भारी चटान उखाडा और आक्रोश के साथ उसे मेघनाद पर फेंक दिया। चटान को आते देख इंद्रजीत आकाश मे कही विलीन हो गया। हनुमान्‌जी उसे ललकारते पर वह निकट ही नहीं आता, क्योंकि वह पवनकुमार का मर्म जानता था। 


आकाश में विलीन रहकर इंद्रजीत अंगारे बरसाने लगा। अनेक प्रकार के भूत पिशाच तथा पिशाचिनियाँ का नाच-नाचकर ' काटो' मारो, का शोर करने लगा।


वह कभी आकाश से खून, विष्टा, बाल ,पीब, और हड्डियाँ बरसाता , तो कभी पत्थर फेंक देता ,एक क्षण इंद्रजीत ने धूल बरसाकर ऐसा अँधेरा कर दिया की सूरज को कला ग्रहण लग गया हो।


इंद्रजीत की माया देखकर संपूर्ण वानर सेना व्याकुल हो उठी । यह सब देखकर प्रभु श्री रामजी ने एक ही बाण मे इंद्रजीत की रची हुई सारी माया काट डाली, जैसे सूर्य का अंधकार से उदय हुआ है। श्री रामजी से वानर सेना, अंगद हाथों में धनुष-बाण , गदा लिए हुए श्री लक्ष्मणजी आक्रोश मे इंद्रजीत पर प्रहर करने दौड़े।


लक्ष्मणजी और मायावी इंद्रजीत दोनों योध्या अत्यंत क्रोधित एक-दूसरे से भिड़ने गए। राक्षस मायाशक्ति एव अनीति करते यह देख लक्ष्मणजी क्रोधित होकर तुरंत इंद्रजीत के रथ को तोड़ डाले और उसके सारथी के टुकड़े-टुकड़े कर दिए।


श्री लक्ष्मणजी मेघनाद पर अनेक प्रकार के बाणों से प्रहार करने लगे। मेघनाद ने अनुमान लगाया कि अब तो उसके प्राण संकट मे है ,ये तो मेरे प्राण हर लेंगे।


अन्य रामायण भाग :– 


श्री राम जी की रामायण भाग १ 

श्री राम जी की रामायण भाग २

श्री राम जी की रामायण भाग ३


तब रावणपुत्र मेघनाद आकाश में लुप्त होकर अपनी चालबाजी से लक्षण जी पर वीरघातिनी शक्ति चलाई। वह तेजपूर्ण वीरघातिनी शक्ति लक्ष्मणजी की वक्षस्थल में जा लगी। वीरघातिनी शक्ति लगने से लक्ष्मणजी मूर्च्छा हो गए। तब मेघनाद भय छोड़कर उनके पास चला गया


रावणपुत्र मेघनाद के सौ करोड़ योद्धा मूर्च्छा लक्ष्मणजी को उठाने का प्रयास कर रहे थे, परंतु जगतधारी शेषावतार सौमित्र श्री शेषजी उन तूच सैनिक कैस उठा पाते? सारे सैनिक लजाकर चले गए। संध्या हो गई थी सारे सैनिक लौट रहे थे । तब हनुमान जी मूर्च्छा लक्ष्मणजी के पास पहुंचे और उन्हें उठाए और सूबेल पर्वत के स्थान पर पहुंच।


श्री रामजी ने सेना से पूछा की लक्ष्मण कहाँ है? तब तक मारुतिनंदन सुमित्रानंदन को ले आए। छोटे भाई की दशा देखकर प्रभु ने विषादपूर्ण, निर्जन हो गए ।


सारी वानर सेना अंधकारपूर्न आक्रोश मैं चलेगाई जामवंत काका ने सुझाव दिया और कहा कि लंका में विख्यात सुषेण वैद्य निवास करते है , उन्हे ले आओ वह लक्ष्मण जी का अवश्य उपचार करदेंगे लेकिन उन्हें लाने के लिए कौन जाएगा? हनुमान्‌जी अपने रूप को छोटा करके लंका मे प्रवेश किया और सुषेण वैद्य को उनके घर समेत ही उठा लाए। 


वैद्यनाथ सुषेण ने आकर प्रभु श्री रामजी के चरणारविन्दों (कमल के समान चरण) में सिर नवाया और लक्ष्मण जी का इलाज शुरू किया उन्होंने श्री राम जी से संजीवनी पर्वत मैं संजीवनी बूटी को लाने की पेशकश की ओर सुषेण वैद्य साथ मे यह भी कहा की उन्हे यह जादीबूती सूर्योदय से पहले चाहिए तभी वह श्री लक्ष्मण जी को संकट के छुड़ा पाएंगे। 

रामायण-की-कथा
रामायण की कथा


जामवंत काका ने हनुमानजी को जड़ी बूटी लाने का आदेश दिया। पवन पुत्र हनुमान श्री राम जी का आशीर्वाद लेकर अपने विकराल रूप मे आकर जादीबूटी लेने चले। उधर लंका मे एक गुप्तचर ने लंकेश को सारे स्थिति की खबर दी। तब रावण अपने महामायवी , छलावी कालनेमि को बुलाया।


लंकेश ने कालनेमी को सारा हाल बतलाया। कालनेमि ने यह सब सुनने के बाद सुना अपना सिर पिता और खेट प्रकट किया। कालनेमी ने कहा अगर जिसने तुम्हारे और लंका के सारे महारथियों के रहते हुए भी नगर जला डाला, उस महाबली का मार्ग कौन रोक सकता है। कालनेमी की यह बात सुनकर रावण अत्यंत क्रोधित हो गया और कालनेमी को मृत्यु दण्ड देना का आदेश दे दिया। भयभीत होकर कालनेमि ने मन ही मन विचार किया कि अगर मेरी मृत्यु निकट आही गई है तो क्यों न मैं श्री रामजी के एक बलवान दूत के हाथो से मरूँ, यह दुष्ट पापी तो पाप समूह में रत (लिप्त) है।


कालनेमी हनुमानजी के मार्ग में कपट से एक मुनि का वेष में विराजमान हो गया। मूर्ख कालनेमी अपनी तुच्छ माया से सर्वोच्य मायापति के दूत (भक्त) को मोहित करने चला था। पवनपुत्र हनुमान बड़े ही करुणाकारी करुणानिधान दयासिंधु, परमेश्वर है , जब उन्होंने देखा कि एक मुनि इस अति दुर्गम अगम्य स्थान में तपस्या मे लीन है , तब वह खुद को उनके समक्ष जाने से रोक ना पाए और उनके समक्ष पहुंचकर नतमस्तक हो गए। 


हनुमान्‌जी ने मुनि भेष धारी कालनेमी से जल माँगा, तो उसने अपना कमण्डल दे दिया। हनुमान्‌जी ने कहा मे इस थोड़े से जल मैं तृप्त नहीं होने वाला। तब कालनेमी ने तालाब की ओर इशारा करके स्नान करके जल ग्रहण करके लौटो मैं तुम्हे दीक्षा दूंगा। हनुमानजी के तालाब में प्रवेश करते ही एक मगरी ने उसी वक्त आकर हनुमान्‌जी का पैर को अपने जबड़े से पकड़ लिया। हनुमान्‌जी ने उसके जबड़े को पकड़कर उसके दो टुकड़े कर डाले। 


मृत मगर का शरीर एक दिव्य स्त्री(अप्सरा) मैं परिवर्तित हो गया और आकाश की रोशनी में कही विलीन हो गया । तब वह स्त्री(अप्सरा) हनुमानजी के समक्ष प्रकट होकर बोली –हे वीर वानर! मैं तुम्हारे दर्शन पाकर धन्य हो गई । तुमने मुझे श्रेष्ठ मुनि के श्राप से मुक्त कर दिया। हे कपि! आप यहा जिस मुनि के कहने पर आए है , वह मुनि नहीं वह एक घोर दुष्ट निशाचर कालनेमी है। हे महावीर मेरा वचन सत्य है। यह कहकर अप्सरा अंतर्धान हो गई।


अप्सरा के अंतर्धान होते ही हनुमान जी मुनि के पास पहुंचे और कहा- हे मुनि! आप के इस सहायता के लिए पहले आप गुरुदक्षिणा ले लीजिए। हनुमान्‌जी ने मुनि के सिर को पूँछ में लपेटकर उसे जमीन में पछाड लगाई। कालनेमी अपने वास्तविक रूप मैं आकर राम-राम कहकर अपने प्राण छोड़े। निशाचर कालनेमी के मुख से राम-राम का उच्चारण सुनकर हनुमान्‌जी हर्षित होकर आगे बड़े।


रामायण-लक्ष्मण-शक्ति
रामायण लक्ष्मण शक्ति


हनुमान जी सुषेण वैद्य द्वारा बताएं गए पर्वत पर जा पहुंचे लेकिन तभी उन्होंने देखा कि सूर्य उदय होने वाला है, लेकिन वैद्य जी के अनुसार लक्ष्मण जी के प्राण बचाने के लिए जड़ी-बूटी सूर्य उदय से पहले लेकर जाना था। इसलिए उन्होंने सूर्य देव से विनती की कि वह कुछ शरण पश्चात उदय हो लेकिन सूर्य देव के ना मानने से पवनपुत्र हनुमान क्रोधित होकर अपनी शक्ति से सूर्य के चारों ओर घने काले मेघ ला दिए। जिससे कि सूर्य उदय ना हो पाए और हमें थोड़ा समय मिल सके। हनुमान जी हिमालय पहुंचकर संजीवनी पर्वत पहुंचे पर संजीवनी बूटी न पहचान पाने के कारण उन्होंने एकदम से विशालकाय पर्वत को ही उखाड़ लिया। संजीवनी पर्वत लेकर हनुमान्‌जी आकाश मार्ग से उड़ते हुए अयोध्यापुरी के ऊपर पहुंचे। 


श्री राम जी और लक्ष्मणजी के भाई भरतजी ने आकाश में अत्यंत विशाल स्वरूप का एक जीव देखा, तब उन्होंने अनुमान लगाया कि यह अवश्य कोई राक्षस ही होगा , उन्होंने हनुमान जी को एक बाण मार दी। भारत जी का बाण लगते ही हनुमान्‌जी के मुख से 'राम, राम, का उच्चारण निकाला और वह मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर आ गिरे। रामनाम सुनकर भरतजी दौड़कर हनुमान्‌जी के पास पहुंचे 


हनुमान्‌जी को अचेत देखकर भरत जी ने उन्हे हृदय से लगा लिया। अनेक तरह से जगाने के बाद भी वह ना जागे। तब भारत जी उदास होकर कहते है की – जिस विधाता ने मुझे मेरे प्रिय भ्राता श्री राम से विमुख किया , उसी ने आज फिर उसने मूझसे यह भयानक कार्य करा दिया। यदि मेरा श्री रामजी के प्रति निष्कपट प्रेम है , और यदि श्री रामजी मुझ पर यकीन करते है तो यह वानर कष्ट और वेदना मुक्त हो जाए। भरत जी के यह वचन सुनते ही कपिराज 'कोसलपति श्री रामचंद्रजी की जय हो, जय हो' कहते हुए उठ खड़े हुए।


हनुमान जी के खड़े होते ही भरत जी ने उन्हें अपने हृदय से लगाया। हनुमान जी श्री राम जी के वनवास के दौरान बीती सारी घटना संक्षिप्त में समझाएं और उन से आज्ञा लेकर संजीवनी पर्वत लेकर आगे बड़े।


भरत जी अपने भैया भाभी और अपने छोटे भाई लक्ष्मण के आपबीती को सुनकर दुखी होकर नियति को कोसने लगे।



अन्य ख़बरें :–




उधर दूसरी ओर श्री रामचंद्र जी लक्ष्मण जी का मस्तिष्क अपने जाँघ मैं रख कर सामान्य मनुष्य के भांति विलाप करने लगे। यह सब देख कर सारी वानर सेना आक्रोश में डूब गई। उसी क्षण हनुमान जी संजीवनी पर्वत लेकर पहुंचे। हनुमान जी को आता देख सारी वानर सेना में उमंग आ गया। सुषेण वैद्य ने संजीवनी पर्वत से संजीवनी बूटी लेकर लक्ष्मण जी का उपचार किया। लक्ष्मण जी ठीक हो गए। श्री रामचंद्र जी यह देखकर अति प्रसन्न हुए और उन्होंने लक्ष्मण जी को अपने गले से लगा लिया और सुषेण वैद्य को धन्यवाद किया। जामवंत काका ने हनुमान जी को उन्हें वापस छोड़ आने का आदेश दिया। वैद्य जी को लंका छोड़ आने के बाद श्री रामचंद्र जी ने हनुमान जी को अपने गले से लगाया और प्रभु परम सुजान और अत्यंत ही कृतज्ञ हो गए। सारी वानर सेना यह देख कर हर्षित हो ग7ई।

Ramayan ki Kahani
Ramayan ki Kahani


लक्ष्मण जी का समाचार जब रावण के कानों में पड़ा तब वह क्रोधित होकर सुषेण वैद्य को कारावास में डालने का आदेश दे दिया । लंकेश ने युद्ध के लिए अब अपने भाई कुंभ कारण को जगाने का आदेश अपने सैनिकों को दिया । 


प्रश्न : कुंभकर्ण कौन है।

उतर: कुंभकरण लंकेश्वर रावण का छोटा भाई था। पिता विश्रावा और माता कैक्शी को पुत्र था। कुंभकर्ण की धर्म पत्नी सम्राट बाली की पुत्री वज्रज्वाला थी। कुंभकरण की अन्य पत्नियों के नाम तडित्माला, कर्कटी था। ब्रह्मा देव के वरदान के कारण कुंभकरण छः महीने सोता और 1 दिन उठता और फिर छः महीने सो जाता।


सिनिको के दिनों के प्रयास के बाद कुंबकरण अपनी गहरी निद्रा से उठा। अभिमानी परतापी रावण ने कुंबकरन के सवाल के बाद उसे संक्षिप्त कथा बताई और यह भी बताया की कैसे वानरों ने बड़े-बड़े बलशाली रक्षसो एव योद्धाओं का संहार कर डाला। पराक्रमी योद्धा अतिकाय ,देवशत्रु (देवान्तक), मनुष्य भक्षक (नरान्तक),दुर्मुख, और अकम्पन तथा महोदर आदि दूसरे सभी वीर रणधीर रणभूमि में मारे गए। रावण के यह वचन सुनकर विशाल कुंभकर्ण दुःखी होकर बोला- अरे मेरे मूर्ख! भाई जगज्जननी जगपालिका जानकी को हर लाकर अब तू कल्याण चाहता है। हे राक्षसराज! लंकेश अपने जीवन मैं तूने सबसे बड़ी भूल कर बैठी यह तूने अच्छा नहीं किया और अब आकर मुझे क्यों जगाया? अभी भी अभिमान छोड़ दो मेरे भाई और त्रिलोक्सवामी करुणानिधन श्री रामजी के चरणों में चलो कल्याण होगा।


कुंभकरण के लाख समझाने के बाद भी हटी रावण ना समझा उसके बाद कुंभकर्ण के लिए भोजन का प्रबंध हुआ उसने भैंसे और मदिरा का सेवन करके वज्रघात समान गरजा। श्री राम जी के दर्शन के लिए उत्साह से कुंभकर्ण ने अपने भाई और अपने पत्नी से भ्राता धर्म निभाते हुए किला छोडा और बिना सेना के अकेले युद्ध करने चला गया।


कुंभकरण को देखकर विभीषण आगे आए और कुंभकरण के चरणों मे गिरकर आशीर्वाद लिया। छोटे भाई को उठाकर कुंभकर्ण ने हृदय से लगाया। विशालकाय कुंभकर्ण जगत पालक श्री राम जी और उनके छोटे भाई लक्ष्मण के दर्शन किए। 


वानर सेना ने जब सुना की बलवान्‌ कुंभकर्ण युद्ध मे आ रहा है वे सब किलकिलाकर दौड़े। वृक्ष और पर्वत उखाड़कर दाँत कटकटाकर उन्हें उसके ऊपर फेकने लगे।


वानर एक साथ करोड़ों पहाड़ों के शिखर को लेकर उस पर प्रहार करते हैं, परन्तु इससे न तो उसका कुछ एहसास होता और ना ही उसे कोई चोट लगती।


तब हनुमान्‌जी क्रोधित होकर कुंभकर्ण को एक घूँसा मारा, जिससे पृथ्वी पर गिर पड़ा । फिर उसने उठकर हनुमान्‌जी पर वार किया । दोनो महाबलियो में भीषण युद्ध हुआ। संपूर्ण वानर सेना के महाबली सुग्रीव अंगद , नल– नीर सभी को मूर्छित कर विभीषण अजय प्रतीत होने लगा। करोड़ों वानरों को पकड़कर और उनके रक्त की होली खेल कर कुंभकर्ण ने गर्जना लगाई। यह देख वानर सेना भयभीत हो प्राण बचा भाग खड़ी हुई। अकेले कुंभकर्ण ने संपूर्ण वानर सेना को तितर-बितर कर दिया। श्री रामचंद्रजी ने देखा कि अपनी सेना व्याकुल देख अपना कोदंड धनुष लेकर कुंभकरण के समक्ष पहुंच। कुंभकरण और श्री राम जी दोनों में भीषण युद्ध इधर से श्री राम जी अनेकों प्रकार की बाण छोड़ते उधर से कुंभकरण उन सबको अपनी मायावी शक्ति से विफल कर देता । 


श्री रामचंद्र जी क्रोधित होकर अपने दिव्यास्त्र का प्रयोग किया जिससे कुंभकरण मूर्छित होकर राम नाम लेकर अपना देह त्याग। यह समाचार जब लंका के राजभवन तक पहुंची तब संपूर्ण लंका में शोक कर माहौल छा गया जैसे काले घने मेघ वर्षा के लिए तात्पर्य है।

 

रामायण-इन-हिंदी
रामायण इन हिंदी


प्रश्न : मेघनाद कौन है।

उतर : हिंदू रामायण के अनुसार मेघनाथ इंद्रजीत रावण का प्रिय पुत्र था वह इंद्रलोक का अधिपति था। इंद्रजीत का यह वरदान था की उसे वही मार सकता था जो १४ वर्ष के लिए सोया ना हो , इस वजह से उसकी मृत्यु भगवान श्री राम के छोटे भाई लक्ष्मण जी के हाथों में जो वनवास के दौरान 14 वर्ष अपनी भैया भाभी की पहरेदारी हेतु सोए नहीं थे। 


रावण की आज्ञा लेकर अब इंद्रजीत रणभूमि में आया। मेघनाद अपनी मायामय रथ पर चढ़कर आकाश में चला गया और मायावी शक्ति के लोभ मे अट्टहास करके गर्जना करने लगा, जिससे वानरों की सेना में भयभीत होने लगी।वानर सेना जब उसपर तलवार, कृपाण , शक्ति, शूल आदि अस्त्र,शास्त्र एवं वज्र से प्रहार करती तब वह बहुत से आयुध चलाता और पत्थर, फरसे, परिघ,और बहुत से बाणों की वृष्टि करने लगता। नभमंडल के दसों दिशाओं में बाण छा गए, जैसे की मानो मघा नक्षत्र के काले बादलों ने झड़ी लगा दी हो।


सभी वानर व्याकुल हो गए। पुरुषार्थी शूर इंद्रजीत ने हनुमान्‌जी, अंगद, नल और नील आदि सभी बलवान बलवानों को व्याकुल कर दिया। उसके बाद मेघनाद ने सुग्रीव , लक्ष्मणजी, और विभीषण को अपने बाणों से मारा और उन्हे जख्मी करदेने के बाद वह श्री रामजी से लड़ने लगा। वह जो बाण छोड़ता है, उन्हे श्री राम जी विफल कर देते। मेघनाथ के सारे प्रयास विफल हो जाने के बाद उसने श्री राम जी और लक्ष्मण जी के ऊपर नागपाश से प्रहार कर दिया । दोनो अयोध्या वासी नागपाश में लिप्त हो गए , यह देख इंद्रजीत अपनी मायावी जाल से निकलकर मुर्च्छ भाईयो के समक्ष जा पहुचानोर उन्हे भला बुरा कहने लगा ।


Ramayan ki kahani
Ramayan ki kahani


यह देख जामवंत काका क्रोधित होकर मेघनाद के सीने में अपने कोहनी से मारा , मेघनाद धड़ाम से जमीन मे आ गिरा । काका ने फिर उसके दोनो टांगों को पकड़कर पछाड़ दिया। मेघनाथ क्रोध में आकर कर्ज ना करके कहा अरे मूर्ख अभी तक मैं तुझे बुजुर्ग मान के माफ कर रहा था। यह कहकर इंद्रजीत ने एक अपने चमत्कार से त्रिशूल लाकर उससे काका पर प्रहर किए , काका ने त्रिशूल को एक ही हाथ से रोक कर उसे इंद्रजीत की छाती में ही दे मारा। रावणपुत्र मेघनाद अचेत पड़ा था ,उसी वक्त काका ने उसे उठाके जोरो से गोल घुमाने लंका में फेक दिया। यह सारी घटना देख सारे देवगण भाभित हो गए । देव ऋषि नारद ने पंछी राज गरुड़ को भेजा । पंछी राज गरुड़ श्री राम जी लक्ष्मण जी दोनों के नागपाश तोड़ा और वापस लौट गए।


इस घटना के बाद मेघनाथ में घनघोर यज्ञ आरंभ कर दिया और वरदान स्वरूप विशेष एव दुर्लभ अस्त्र-शस्त्र प्राप्त किए। मेघनाथ अगली सुबह अपने दिव्य स्तरों के साथ रणभूमि में पहुंचा। लक्ष्मण जी ने प्रण लिया की अगर आज वह इंद्रजीत का वध नहीं किए तो मै श्री रघुनाथ जी का सेवक ना कह लाऊ। शेषावतार ने रघुनंदन जी के समक्ष नतमस्तक होके वानर सेना संघ रणभूमि में पहुंचे।


रामायण-हिंदी
रामायण हिंदी


दोनो योद्धा एक दूसरे का वध करने का प्रण लिए रणभूमि में प्रचंड युद्ध कर रहे थे। शेष अवतार के बाणों से मेघनाथ के दो टुकड़े हो जाते हैं लेकिन वह वापस जीवित हो उठाता। 


मेघनाद यज्ञ के कारण नहीं मरता, यह देखकर सारे वीर लौटे, तब वह दुष्ट चिग्घाड़कर लक्ष्मंजी की ओर दौड़ा। उस मायावी को क्रुद्ध काल की भाती आता देखकर लक्ष्मणजी ने भयावह बाण छोडा , वज्र के भाती बाणों को अपने समक्ष आते देखकर वह तुरंत आकाश में कही अंतर्धान हो गया और फिर भाँति-भाँति के रूप धारण करके शेषावतार को विचलित करके युद्ध करने लगा। वह कभी उनके समक्ष प्रकट होता और कभी विलुप्त हो जाता । शत्रु को पराजित न होता देख वानर सेना डरने लगी और लक्ष्मण जी क्रोधित होने लगे । सुमित्रानंदन रामजी के प्रताप का स्मरण करके बाण का संधान किया। बाण छोड़ते ही मायावी मेघनाद का सर- धड़ से अलग हो गया । मरते समय मेघनाद ने अपना कपट त्यागा और उसका सिर सीधा जाके रावण के चरणों में जा गिरा। हनुमान जी ने इंद्रजीत के धड़ को सम्मानपूर्वक लंका के द्वार छोड़ आया। 


रामायण-इन-हिंदी
रामायण इन हिंदी


लंका पति रावण अपने पुत्र के मृत्यु के पश्चात वह स्वयं युद्ध में उतरा उसके संग राक्षसों दानवों दैत्यों की अपार सेना चली। चतुरंगिणी सेना की टुकडि़याँ और मतवाले हाथियों का झुंड का झुंड। रंग-बिरंगे बाना धारण करने वाले सुरवीरों के समूह के साथ रावण युद्धभूमि में पहुंचा ।

उसने कहा- हे मेरे योद्धाओं! सुनो तुम इन वानरों को मसल के खालो और मैं यह दोनों राजकुमार को मारता हूं। ऐसा कहकर उसने सेना मैं उमंग भरी और सेना मैं रावण की जय के नारे लगने लगे। दोनों ओर के वीर योद्धा जय-जयकारा करके एक दूजे की ओर दौड़े इधर श्री रघुनाथजी का और उधर लंकेश का बखान करके सेना परस्पर भिड़ गई। 


रावण ललकार बाणों की वर्षा करता और इधर से अंगद और हनुमान्‌जी राक्षसों के टुकड़े टुकड़े कर देते। राक्षस एव वानर अपने-अपने स्वामी की दुहाई देकर जोश से लड़ रहे थे। दोनों ओर के प्रबल योद्धा रण रस के अधीन होते जा रहे थे। वानरों को श्री रामजी के नाम से बल मिलता और वे जयशील होगे। एक-दूसरे से भिड़ते और ललकारते वानर राक्षस को एक-दूसरे से ही मसल-मसलकर धरती मे गाड़ देते। वानर मारते , पकड़ते , काटते और पछाड़ देते । राक्षसों के सिर तोड़कर उन्हीं सिरों से दूसरे राक्षस को मारते। राक्षसो के पेट को चीर देते और उनके भुजाएँ उखाड़ते और उससे दूसरे को मरते। कुछ वानर और भालू राक्षसों को मिलकर जीवित धरती मे गाड़ देते। 


युद्ध में शत्रुओं की दशा देखकर ऐसे लगता मानो शेरो के झुंड से लड़ने गीदड़ो की फौज आई हो। यह देखकर रावण अत्यंत क्रोधित हुआ और वानरो पर बाणों की वर्षा करते गया जिससे वानर अचेत हो गए। शेष वानर रघुनंदन की ओर दौड़े और रक्षा की पुकार लगाई ।


एक एक करके सारे राम सेना के शूरवीर रावण से लड़े लेकिन वह सभी को परास्त कर दिया। अंततः प्रभु श्री राम जी स्वयं उससे युद्ध करने गए। श्री रघुनाथजी ने अपना भुजा उठाकर सभी वानरों का साहस लौटाया। तब वे एक-दूसरे को पुकारते और जय श्री राम के नारे लगाकर युद्ध मैदान मे लौट गए। रघुनंदन जी का बल पाकर संपूर्ण वानर सेना रणभूमि की ओर दौड़ पड़ी। श्री राम जी और रावण में युद्ध हुआ रावण अपनी मायावी शक्ति से आकाश में लुप्त हो कर छलावा युद्ध नीति अपनाने लगा। श्री राम जी की सहायता के लिए इंद्रदेव ने अपना स्वर्ण रथ भेजा। श्री राम जी और लक्ष्मण दोनों मिल्क रथ में विराजमान हुए और सारथी ने को रक्त आकाश की ओर ले गया। श्री राम जी रावण पर अपने दिव्य अस्त्र शस्त्रों से प्रहार करते परंतु वहां सभी मित्रों को विफल कर देता। तब श्री राम जी को रावण के छोटे भाई विभीषण रावण की गुप्त जानकारी दी।


विभीषण जी ने श्री राम जी क्या कहा ब्रह्मा देव के द्वारा दिए गए अमृत के कारण वर्ष रावण अजय है । रावण की जीवनधारा अमृत उसके पिंडिका में स्थित है। विभीषण के यह कहने मत से ही रावण अत्यंत क्रोधित होकर प्रचण्ड शक्ति विभीषण की ओर छोड़ी। शक्ति विभीषण के समक्ष ऐसी चली जैसे स्वयं यमराज का दण्ड हो । शक्ति को आती देख, श्री रामजी ने विभीषण को पीछे खींचकर खुद सामने होकर वह शक्ति स्वयं अपने ऊपर ले ली।


श्री राम जी एक क्षण के लिए मुर्रछ हुए लेकिन उन्होंने स्वयं को संभाला और युद्ध में लौटकर अपने अस्त्र शस्त्रों से रावण पर प्रहर किया । जिससे रावण मुरर्छ हो धरती मे आ धड़ाम से आ गिरा। रावण के सारथी ने उसे रण भूमि छोड़ राजभवन की ओर रथ ले लिया । 


उधर दूसरी ओर पंचवटी में सीता माता की सेविकार त्रिजटा उनके पास जाकर उन्हें संपूर्ण कथा बताई। श्री राम जी ने अपने शत्रु के हार का संवाद सुनकर सीता देवी के हृदय प्रसन्नता से खिल उठा।


सारथी ने रावण को रथ में बैठाकर राजभाव पहुंचते ही रावण चेतन स्थिति में आ गया। जब रावण ने देखा की वह रण भूमि में नहीं अपने भवन में हैं तब उसने अपने साथी को डांट फटकार लगाकर रणभूमि में वापस चलने को कहा।

रामायण-कथा-हिंदी
रामायण कथा हिंदी


रणभूमि में पहुंचकर रावन फिर से युद्ध में शामिल हो गया श्री राम जी ने यह जब देखा तक वह उससे युद्ध के लिए ललकार ने लगे। कुछ क्षण पासचायत श्री राम और रावण का भीषण युद्ध वापस शुरू हो गया। लंकेश्वर रावण की सिर , भुजाएँ और टांगे बहुत बार काटी गईं। फिर भी मायापति रावण मरता नहीं ही था। उसके सिर को काटते ही सिरों का समूह आ जाता , जैसे जीवन मे प्रत्येक लाभ पर हमारा अवचेतन लिप्सा बढ़ती हो। तब रघुनंदन श्री रामजी ने लंकेशभ्रता विभीषण की ओर देखा। विभीषण के कहे वचन अनुसार श्री रामजी हर्षित होकर हाथ में कोडांड लिए मंत्रो का उच्चार करे भीषण प्रलयकारी बाण उत्पन किया और उससे अपने कानो तक खिचके उसे रावण की ओर कुल इकतीस ३१ बाण छोड़े । प्रथम बाण ने रावण के पिंडीका मे स्थित अमृत के कुंड को नष्ट कर दिया। द्वितीय एव तृतीय बाण ने कोप करके रावण के सिरों एव भुजाओं को निशाना बनके शरीर के आरपार हो गया । शेष बाण रावण के शेष धड़ के दो हिस्से कर देते है । मस्तिष्क एवं भुजाओं से रहित रावण धड़ शत्रुओं के रक्त से सनी धरती मे आ गिरा। 


अहंकारी रावण के स्खलित हो ही धरती आकाश पाताल डगमगा उठे। सागर, तरणी ,दासों जानिब के हाथी और नभ अचल सब क्षुब्ध हो उठे। रावण की मस्तिष्क एवं भुजाएं काटकर मंदोदरी के सामने रखकर श्रीरामबाण तरकस में लौट गए।


रामायण-युद्ध
रामायण-युद्ध


देवता गण ,ऋषि मुनि, अपसराए श्री रामचंद्र जी पर फूल बरसते और श्री राम जी की जय हो, रघुपतिजी की जय हो, जय हो! जय हो जय हो! 


लंका के राज भवन में रावण की समस्त पत्नियां एवं मंदोदरी विलाप करते हुए श्री राम जी को कोसते हैं और असुरों की प्रथा – परंपरा वैभवशाली विलासपूर्वक, शोभनीय अंत्येष्टि की। 


सब क्रिया-कर्म करने के पश्चात श्री राम जी ने विभीषण जी को अपने कहे वचन अनुसार उनके राजतिलक की तैयारी शुरू की । प्रभु के वचन सुनते मात ही वानर तुरंत जाकर उन्होंने राजतिलक की सारी रीति, पद्धति से व्यवस्था की।श्री राम जी ने बड़े ही आदर, सम्मान एव प्रतिष्ठा के साथ विभीषणजी को लंका के राजासन सिंहासन पर बैठाया और उनका राज्याभिषेक किया ।


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प्रभु के आदेश अनुसार हनुमान जी लंका के पंचवटी पहुंचकर देवी सीता को रावण वध एवं विभीषण जी के राज्य अभिषेक की संपूर्ण सूचना देते हैं। हनुमान जी अंगद नील नार और वानर सेना की एक टुकड़ी देवी सीता को आदर सत्कार पूर्वक श्री राम जी के पास ले आते हैं। लंका के नए महाराज की की आज्ञा पाकर लंका की समस्त दासिया सीता देवी को संवारने में जुट जाती है। विशेष एवं अलौकिक प्रकार की रत्न गहने पहनकर देवी सीता को एक उत्कृष्ट पालकी मे ले आते है।श्री राम जी के कहे अनुसार देवी सीता ने लक्ष्मण जी को अग्नि का प्रबंध करने को कहा और अग्नि परीक्षा दी।


Ramayan-Ki-Kahani

Ramayan Ki Kahani



प्रभु की आज्ञा से सभी वानर एव भालू श्री रामजी के स्वरूप को हृदय मे बसाकर हर्ष और विषाद सहित किसकिंधा लौट गए। वानरराज सुग्रीव, अंगद जाम्बवान्‌, ,नील, हनुमान्‌जी नल तथा विभीषणजी का अतिशय प्रेम देखकर प्रभु ने सबको अयोध्या चलने का आदेश दिया। विभीषण जीने श्री राम जी गीता देवी और लक्ष्मण जी के अयोध्या लौटने के लिए उन्हें रावण की पुष्पक विमान दी। जिसके द्वारा सभी महारथी अयोध्या लौट गए।



इति श्रीमद्रामचरितामानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने : षष्ठ सोपान: समापत: ।

अर्थ : कलयुग के संपूर्ण पापों को विध्वंस करने वाले श्रीरामचरित्रमानस का यह छठा स्वपान समाप्त हुआ। 



( लंकाकाण्ड समाप्त )



उतरकाण्ड रामायण कथा हिंदी और रामायण की कहानी की समाप्ति 



७. सप्तमः काण्ड उतरकाण्ड :– 



उतरकाण्ड श्री वाल्मीकिजी अथवा श्रीमद् तुलसीदासजी द्वारा रचित रामायण का उपसंहार है । 


श्री राम जी लक्ष्मण जी माता सीता महाराज सुग्रीव हनुमान जी अंगद जामवंत काका नील नर अथवा वानर सेना के समस्त विद्वान एवं गुरुवान सब अयोध्या वापस लौटे।


समस्त अयोध्या वासी अथवा रघुकुल वासी द्वारा बड़े ही उत्साह जनक धूमधाम से श्री राम जी एवं उनके साथियों का अयोध्या स्वागत हुआ। समस्त संसार के विद्वान गुर्जन, सिद्ध ऋषि मुनि , देव देवी , नर किनर , रघुकुल का पोष्य वर्ग संग स्वयं ब्रह्मा जी एवं शिव पार्वती जी सभी की उपस्थिति में श्री रघुनंदन रघुराज रघुवंशी श्री राम जी का बड़े ही धूमधाम से राज्याभिषेक हुआ ।


राज्य अभिषेक के पश्चात सभी अपने अपने घर लौट गए। श्री राम जी ने अपनी प्रजा अथवा अयोध्या वासियों को उद्देश्य दिया जिसे सुनकर सारी प्रजा व्यथा वे कृतज्ञता प्रकट किया। अयोध्या ने सीता के पवित्रता एव चरित्र पे सवाल उठाए जिस कारण वर्ष राम जी ने अपनि सीता जी का बड़े ही क्लेश में त्याग किया। सीता जी अपने रघुनाथ के द्वारा त्यागे जाने के बाद राजभवन छोड़कर जंगल में श्री वाल्मीकि जी के आश्रम जा कर रहने लगी। सीता माता अपने इस विकट परिस्थिति में गर्भिणी थी ।


समय के पश्चात रघुकुल के चारों रघुवंशियों के दो दो पुत्र हुए। माता जानकी ने वाल्मीकि जी के आश्रम में लव कुश को जन्म दिया।


Love-Kush-Kand-Ramayan
Love Kush Kand Ramayan


बच्चों के जन्म लेते ही माता जानकी ने सभी कष्टो को त्याग कर अपने पुत्रों का बड़े ही अनुराग से पालन पोषण करने लगी। श्री वाल्मीकि जी ने दोनो भाईयो को धर्म, वेद,उपनिषद,युद्ध कौशल अथवा समस्त सीक्षा दी। लव कुश के बड़े होते ही वह दोनो अपनी माता (माता जानकी) के लिए अयोध्या के राजभवन न्याय मागने पहुंचे। लेकिन मुर्ख अनपढ़ नासमझ प्रजा के इच्छा के कारण श्री राम जी के आदेश से माता जानकी को फिर से परीक्षा के लिए बुलाया।


जैसे कि हमने आप सभी को बालकांड मैं यहां ज्ञात करा ही चुके हैं की माता जानकी जनकपुरी के राजा जनक को धरती से मिल थी। देवी सीता अयोध्या पहुंचकर अपनी परीक्षा देकर धरती माता के साथ धरती में समा गई। 

रामायण-सीता-हरण
रामायण का धरती में समाना


श्री राम जी को धरती में आए हजार वर्ष बीत चुके थे नियति के अनुसार जो व्यक्ति या मनुष्य या जीव-जंतु जो भी जन्म लेता है उसका मरना या मृत्युलोक को प्राप्त करना निश्चित है। काल के नियति के अनुसार श्री राम जी ने पहले लक्ष्मण का त्याग किया और इसके पश्चात लक्ष्मण जी से बिछड़ने के गम मे निर्जन एव विषादपूर्ण स्थिति में रहने लगे। रघुवंशियों के सभी पुत्रों के बड़े होने होने पर राज्य बटवारा करके अपने धाम को लौट गए।  



इति श्रीमद्रामचरितामानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने: सप्तमः सोपान: समापत: ।

अर्थ : कलयुग के संपूर्ण पापों को विध्वंस करने वाले श्रीरामचरित्रमानस का यह सात स्वपान समाप्त हुआ। 



( उतरकाण्ड समाप्त )

                  


उतरकांड विशेष नोट :- 



मूल श्री वाल्मिकी रचित रामायण के अनुसार उत्तर काण्ड का कोई अस्तित्व नहीं है। केवल और केवल युद्ध काण्ड सहित मात्र छः काण्ड ही है। उत्तर काण्ड को अधर्मियों द्वारा बाद में जोड़ा दिया गाय है। अरबो अंग्रेजो एंव मुगलों के भारत आक्रमण के पूर्व की कलकत्ता (अभी–कोलकाता डब्लू.बी) में प्राप्त अनुमानतः ६वीं या ५वीं शताब्दी की मूल रामायण पांडुलिपि मे लिखित है जिसमें केवल और केवल चार ४ काण्ड ही हैं । जिसमें अग्निपरीक्षा एव उत्तरकांड का कोई वर्णन नहीं है। वर्तमान की सात ७ कांडो की रामायण पूर्णरूपेण अविश्वास्य अधर्मियों द्वारा रचित षड्यंत्र है।  

 


रामायण शुरू से अंत तक , संपूर्ण रामायण कथा हिंदी में – Youtube video 





रामायण की सीख के बारे में पूछे जाने वाले सवाल - Frequently Asked Questions About Ramayana



प्रश्न क्र. 1 : रामायण से हमे क्या संदेश मिलता है? - रामायण के अनमोल वचन


उतर : हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रन्थों में से एक श्री वाल्मीकिजी द्वारा रचित रामायण, ज़िंदगी का एक अनोखा छायाचित्र का चित्रण करती है और हमे यह सिख भी देती है की कैसे अंततः बुराई पर अच्छाई की ही जीत होती है। श्री रामचरित्रमानस मे एक रघुवंश राजपरिवार की मनमोहक कहानी है जो पति-पत्नी, भाई बहन और पारिवारिकसभासद के रिश्तों का आदर्श पेश करती है।


प्रश्न क्र. 2 : अपने जीवन में हमे क्या करना चाहिए, यह रामायण सिखाती है?


उतर : रामायण हमें जीवन जीने की शैली सिखाती है, महाभारत हमें रहन सहन का तौर तरीका सिखाती है। गीता हमें कर्म करना और फल की चिनता ना करना सिखाती है, और भागवत हमें बिना कष्टों के मरना सिखाते है। मनुष्य जीवन में अटूट परिश्रम, परिवार में प्रेमभाव , चरित्र में पारदर्शिता, व संशारिक रिश्तों में पवित्रता एव परमश हमेशा बनाए रखना चाहिए।


प्रश्न क्र. 3 : श्री रामचंद्र जी के अग्रज भरत जी के चरित्र एव आचरण से हमे क्या शिक्षा मिलती है?


उतर : भरत जी के चरित्र से हमें मातृत्व प्रेम, सेवाभाव, श्रीराम जी के प्रति संपूर्ण समर्पण, कर्तव्यवान, एव निष्ठावान रहने की की प्रेरणा मिलती है।


प्रश्न क्र. 4 : श्री रामचंद्रजी के जीवन से हमें क्या शिक्षा मिलती है?


उतर : रघुवंशी श्री रामचंद्र जी के जीवन से हमें बहुतकुछ सीखने को मिलता है, जैसे की आज्ञाकारी पुत्र माता पिता की आज्ञा का पालन करने वाले , करुण्डानिधान , करुणाकारी दयासिंधु,। हमेशा अपने गुरु का आदर करने वाला । हितकारी कभी भी किसी भी मनुष्य / व्यक्ति को कभी अपने से छोटा नहीं समझना चाहिए।


प्रश्न क्र. 5 : कुंभकर्ण कौन है।


उतर: कुंभकरण लंकेश्वर रावण का छोटा भाई था। पिता विश्रावा और माता कैक्शी को पुत्र था। कुंभकर्ण की धर्म पत्नी सम्राट बाली की पुत्री वज्रज्वाला थी। कुंभकरण की अन्य पत्नियों के नाम तडित्माला, कर्कटी था। ब्रह्मा देव के वरदान के कारण कुंभकरण छः महीने सोता और 1 दिन उठता और फिर छः महीने सो जाता।


प्रश्न क्र. 6 : मेघनाद कौन है।


उतर : हिंदू रामायण के अनुसार मेघनाथ इंद्रजीत रावण का प्रिय पुत्र था वह इंद्रलोक का अधिपति था। इंद्रजीत का यह वरदान था की उसे वही मार सकता था जो १४ वर्ष के लिए सोया ना हो , इस वजह से उसकी मृत्यु भगवान श्री राम के छोटे भाई लक्ष्मण जी के हाथों में जो वनवास के दौरान 14 वर्ष अपनी भैया भाभी की पहरेदारी हेतु सोए नहीं थे। 



प्रश्न क्र. 7 : श्री राम जी के अनुज शत्रुघ्न के जीवन से हमें क्या सिख प्राप्त होता है?


उतर : शत्रुघन जी मौन सेवाव्रती के थे। बचपन से भरतजी का अनुगमन तथा सेवा इनका मुख्य कर्म धर्म एवं व्रत था। वे सदैव , सदाचारी, सत्यवादी,मितभाषी, विषय-विरागी तथा अपने अग्रज श्री रामजी के दासानुदास थे।


प्रश्न क्र. 8 : शेषावतार सुमित्रानंदन लक्ष्मणजी के चरित्र से हम क्या शिक्षा प्राप्त होती हैं?


उतर : लक्ष्मण का चरित्र-मातृ-प्रेम और सेवा सुश्रूषा से ओतप्रोत था। हलाँकि लक्ष्मणजी को वनवास नहीं मिला था, परंतु उन्होंने अपने अग्रज की सुश्रूषा में अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। लक्ष्मणजी ने सिया राम को सर्वोच्च आदर्श मानकर उनकी बड़े ही मनोभाव से सेवा की। उनके चरित्र से हमें , सेवा, मातृत्व प्रेम, कर्तव्य, पालन,समर्पण, की प्रेरणा मिलती है।


प्रश्न क्र. 9 : रावण के जीवन से हमें क्या शिक्षा मिलती है?


उतर : आप भी यह जरूर जान लें कि रावण ने श्री लक्ष्मणजी को क्या-क्या सीख दी या बाते कही. अपने खानसामे, दरबान ,सारथी और भाई से शत्रुता का करिए ...


स्वय को हरवक्त विजेता मानने की गलती मत कीजिए, भले ही हर बार तुम जीतते ही क्यों ना हो। मेशा उस व्यक्ति पर ज्यादा भरोसा कीजिए जो तुम्हारी आलोचना या निंदा करता हो. 



संपूर्ण रामायण निष्कर्ष :- 



आज के लेख रामायण कथा हिंदी और रामायण की कहानी में आपको लंकाकाण्ड और उतरकाण्ड की कथा बतायी गयी है. आशा है आपको रामायण कथा का सम्पूर्ण सार मिल गया होगा. रामायण लंकाकांड और उतरकांड तथा रामायण की कहानी हमारी जुबानी जिसे आप अपने जीवन में उतारकर अपने जीवन को सफल बना सकते है.  

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