Desi Kahani – बच्चो की कहानियां अच्छी अच्छी सुनाओ
आज के इस आर्टिकल में हम आपको 4 कहानी इन हिंदी या देसी कहानी बताएंगे। हमारे द्वारा बताई हुई Desi Kahani बच्चो को ज्ञानवर्धक लगेगा और हमारी रोचक कहानियां से बच्चे बहुत कुछ सीख सकते है। चलिए देखते है क्या क्या है अच्छी अच्छी कहानियां
आज की बच्चो की कहानियां के अलावा हम आपको अच्छी अच्छी देसी कहानी की यूट्यूब वीडियो भी देगे जिसे देखकर भी आप Desi Kahani का लुप्त उठा सकते है। चलिए अब हम मजेदार कहानियां पढ़ना शुरु करते हैं।
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1. बैकवर्ड या स्मार्ट :
क्रिसमस और न्यू ईयर की छुट्टियां नजदीकद थीं। ढेवांश अपनी छुट्टियों को लेकर मन ही मन प्लान बना रहा था। तभी उसने सुना कि पापा ढादी से मिलने 3-4 ढिनों के लिए गांव जा रहे हैं। उसने मम्मी से कहा,” “प्लीज मुझे भी पापा के पास भेज दीजिए न। मैंने कभी गांव देखा भी नहीं।”
मम्मी ने कहा - “देवांश ! तुम्हारा वहां शायद ही मन लगे वैसे भी तुम कहते हो कि गांव के लोग पिछड़े हुए हैं। वहां के बच्चों के लिए भी अक्सर कहते हो बैकवर्ड विलेजगाइजा” । ढेवांश ने कहा- “मम्मी प्लीज छोड़ो न ये सब बातें !”
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मम्मी ने मुस्कुराकर स्वीकृति ढे दी। शाम को ही पापा ओर देवांश ट्रेन में बैठ गए। ट्रेन बिलकुल सही समय पर पहुंच गई थी। सुबह के दस बजे थे। ढेवांश ने देखा, स्टेशन पर खड़ी गाड़ियां कुछ अजीब-सी थीं।
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ये लकड़ी से बनी सामान ढोने वाली साइकिल वैन जैसी गाड़ियां थीं, जिनके सामने मानो आधी मोटरसाइकिल जोड़ दी गई थी लोग उन्हीं पर बैठ रहे थे। देवांश ने पापा कि ओर सवालिया न जरों से देखा।
पापा ने कहा- “बेटा ! यह जुगाड़ है। इन्हीं पर लोग साग-सब्जियां या शहरों से आने वाले सामान ढोते हैं और द सवारी के लिए भी इनका ही इस्तेमाल करते हैं।”
वे ऐसे ही एक जुगाड़ में बैठ गए। थोड़ी ही देर बाद जुगाड़ ने उन्हें उनके घर पहुंचा ढिया। ढेवांश को यह छोटी सी यात्रा बड़ी अच्छी लगी। देवांश ने देखा हवेली के सामने बड़ा-सा मैदान था, जिसमें बहुत सारे बच्चे खेल रहे थे।
एक बच्चा गोल पहिए को आगे से मुड़ी हुई लोहे की रॉड से चलाते हुए अपनी ही मस्ती में “धुर्र धुर” आवाज करते हुए भाग रहा था, वहीं कुछ बच्चे फुटबॉल खेल रहे थे। दादा-दादी, ताऊ और उनके बच्चे ढेवांश को देखकर बहुत खुश हुए। ढादी ने उसे गले से लगां लिया।
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पांच मिनट बाढ़ दादी ने कहा, “मुंह-हाथ धो लो, तुम्हारे लिए कुछ खने को लाती हूं...!” ।
ढेवांश ने मन ही मन सोचा- जरूर दादी चाय-पकोड़े लाएंगी। पापा और देवांश ने मुंह-हाथ धो लिए। दादी दो सेव, दो संतरे और ढो अमरूद ले आईं और बोलीं, “लो खाओ"।
देवांश सोचने लगा- सुबह सुबह फल कोन खाता है? दादी ने मानो उसके मन की बात सुन ली। बोलीं, “बेटा, फल हमेशा सुबह सुबह ही खाने चाहिए" तभी इन का फायदा मिलता है!
ढेवांश ने मन मारकर फल खाने शुरू किए। सबसे पहले उसने अमरूद खाया। ऐसा ताजा और मीठा अमरूढ उसने आज तक नहीं खाया था। देखते ही देखते उसने सेव ओर संतरे भी खा लिए।
ढादी ने उसके चेहरे पर तृत्त के भाव पढ़ लिए बे उन्होंने कहा, “बेटा, यह तुम्हारे. दावाजी की मेहतत का फल है। हमारे बगीचे में आम लौकी, परवल, भिंडी जैसी सब्जियां खूब होती हैं।”
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फलाहार करने के बाद देवांश को बच्चे बाहर ले गए। जल्द ही वह उनकी धमाचौकड़ी में शामिल हो गया। घंटेभर बाद वह थक गया। ।2 बज चुके थे। उसे कसकर भूख लग गई। उसने भीतर आकर पापा से कहा, 'पापा भूख लगी है।'
पापा हैरानी से उसकी तरफ ढेखने लगे। घर में तो उसकी मांकह कहकर थक जाती थी, लेकिन ढेवांश हमेशा यही कहता था कि भूख नहीं है। आज वह खुद खाने के लिए कह रहा था। ढादी वहीं बैठी थीं।
उन्होंने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और कहा, “चलो खाना तैयार है। देवांश ने ढेखा भोजन की थाली में गरमागरम ढाल-भात, आलू-परवल की सब्जी, एक मोटी-सी चपाती और मिर्च का अचार था।
उसने भोजन करना शुरू कर ढिया। सब कुछ बेहद स्वादिष्ट था। खाना खाकर ढेवांश आराम करने लगा तो उसे झपकी आ गई। शाम को उठा तो कई बच्चे आ गए थे। देवांश उनसे बातें करने लगा। बातों ही बातों में उसने अपने मन में ढबी जिज्ञासा के मुताबिक पूछ लिया, “तुम लोगों ने कभी पिज्ा, बर्गर, पास्ता आदि देखे हैं या खाए हैं क्या?”
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देवांश का चचेरा भाई उत्तम हंसकर बोला, 'भाई ! तुम कैसी बात करते हो? हम भी इसी जमाने के हैं। सब कुछ जानते भी हैं और खाते भी हैं, लेकिन सिर्फ महीने दो महीने में एक-दौ बार।” देवंश ने अआध्चर्य से पूछा, “तो तुम कभी शहर जते हो तो. बाजार में कुछ भी नहीं खाते?” इस बात का जवाब श्रीकांत ने ढिया।
वह बोला- “खाते हैं ना! इडली, डोसा, ढोकला जैसे भारतीय व्यंजन या बहुत आते चाट, लेकिन नुकसानदायक जंक फूड या फास्ट फूड नहीं,जो कई प्रकार की बीमारियां ढे सकते हैं।”
तभी स्वाति ने खिलखिलाकर कहा, “भैया ! हम ढेसी अनाज, फलों और सब्जियों पर ज्यादा भरोसा करते हैं। हद इनमें विटामिन, मिनरल और न्यूट्रीशन भरपूर होता है।
वैसे भी अपनी मा से हमें प्यार हे तो हम अपनी मी में उगा हुआ फूड ही खाना ज्यादा पसंद करते हैं।" देवांश ने सकुचाते हुए पूछा," लेकिन मैंने सुबह से देखा है कि तुम लोग मोबाइल भी ज्यादा इस्तेमाल नहीं करते मुझे तो यह भी नहीं पता कि तुम्हारे पास स्मार्टफोन है।
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श्ञीया नहीं!" देवांश की बात सुनते ही सभी बच्चे हंसने लगे। माने वह नासमझी भरी बातें कर रहा हो। फिर सभी ने एक साथ अपनी-अपनी जेब से स्मार्टफोन निकाले।
बिनीता ने कहा, "मैया हम लोग स्मार्टफोन का उपयोग सिर्फ बातचीत करने, जरूरी संदेश भेजने या फिर पढ़ाई के लिए उपयोगी सर्चिंग के लिए ही करते हैं।” सुनिधि बोली- “भैया बुरा मत मानना, स्मार्टफोन का स्मार्ट यूज करना चाहिए, ऐसे नहीं कि आंखें खराब हो जाएं और वक्त की बर्बादी हो।”
गांव के बच्चों की समझदारीभरी बातें सुनकर देवांश शर्मिंदा हो गया। उसने निर्णय लिया कि वह भी अपनी जीवनशैली पूरी तरह बढल देगा और गांव के बच्चों की प्रॉमिस किया कि अब वो गांव के बच्चों के लिए कभी “बैकवर्ड विलेज गाइज' तो हरगिज नहीं कहेगा।
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2. संता का उपहार :
क्रिसमस के नजदीक आते ही बच्चों को सबसे दह्रः अधिक सांताक्लॉज और उनके उपहार याद आते हैं। आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले सुकेश को भी सांताक्लॉज की बड़ी याढ आ रही थी। उसे पूरा विश्वास था कि इस बार सांताक्लॉज जरूर आएंगे और उसे कोई बेहद खूबसूरत उपहार भी ढेंगे।
सुकेश नेएक खूबसूरत पिल्ला पाल रखा था। वह पिल्ले से प्यार तो बहुत करता था, मगर उसकी देखभाल में अक्सर लापरवाही कर ढेता था।
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एक बार पिल्ला बारिश में पूरी तरह भीग गया। उसे सर्दी लग गई। मां ने उसे धूप में रखने और सूखे कपड़े पहनाने के लिए कहा था, लेकिन सुकेश सांताक्लॉज के आने की आस में खोया रहा और उसने पिल्ले पर ध्यान ढेना छोड़ ढिया। धीरे-धीरे पिल्ले की तबीयत खराब होती गई। 24 ढ्सिंबर की रात को उसकी हालत बेहद नाजुक हो गई थी। मां ने सुकेश से कहा, “मुझे लगता के कि
यह बच नहीं पाएगा।” इस बात से सुकेश बहुत उदास हो गया लगा, पिल्ले के नहीं रहने से सी हर जीवन में एक यूनापन छा जाएणा। वह अकेला हो जांएगा। वह दुखी होकर सोने चला गया। उसे अब न सांता क्लाज की याद रही और न ही उनके उपहार की।
वह धीरे-धीरे सुबकत हुआ सो गया। सुबह उसकी नींद खुली तो मां ने पहला प्रश्न यही किया, “बेटा, क्या कल रात को सांताक्लॉज आए थे..? उन्होंने तुम्हें उपहार में क्या ढिया..?”
सुकेश की आंखों से आंसू बहने लगे। उसने कहा, “मां, सांताक्लॉज नहीं आए। मुझे कोई उपहार भी नहीं मित्र मगर छोड़ो उन बातों को, पहले बताओ कि पिल्ला कैसा है..?” मां ने सुकेश से कहा, “बाहर बरामढ़े में खुढ़ जाकर देखो, उसकी क्या हालत है।”
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मगर बरामदे में पहुंचते ही सुकेश खुशी से झूम उठा, उसका प्यारा पिल्ला पूरी तरह स्वस्थ ढिखाई ढे रहा था और धमाचौकड़ी मचा रहा था। मां भी पीछे-पीछे आ गईं।
सुकेश ने मां से पूछा, “मां, यह कैसे हुआ..?” मां ने कहा, “मुझे पता नहीं, मगर यह किसी चमत्कार से कम नहीं है।” सुकेश ने कहा, “मां, जो भी हो, यह बड़ा अच्छा हुआ, मगर सांताक्लॉज के न आने और कि उपहार ना मिलने का दुख मुझे अभी भी हो रहा है।
” मां ने सुकेश से कहा, “तुम्हारे पिल्ले को नया जीवन मिला है, यह नया जीवन कया किसी उपहार से कम है..? लगता है, रात में सांताक्लॉज आए थे और यह उपहार देकर चले गए।”
सुकेश खुशी के मारे मां से लिपट गया और बोला- “सांताक्लॉज ने हमारे पिल्ले को नए जीवन का उपहार दिया है। यह मेरे लिए सावश्रेष्ठ उपहार है। थैंक यू संता! अब मै पिल्ले का पूरा ध्यान रखूंगा ।" ...
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3. जब बच्चो ने पकड़ा सांता क्लॉज को :
मैं सांताक्लॉज को ढेखकर ही रहूंगा” अमोल बोला। “हम कितनी बार तो जागकर देख चुके हैं, ना जाने सांताक्लॉज कब आते हैं और कब चले जाते हैं !” अमोल की छोटी बहन जिनि ने कहा “पर सांताक्लॉज हमारे घर के अंदर आते कहां से हैं?”
अमोल घर पर नजर ढौड़ाते हुए बोला “मैंने किताबों में पढ़ा है कि वह चिमनी से अंदर आते हैं...” जिनि बोली “पर अपने घर में चिमनी है कहां?” अमोल ने पूछा हहूं....तो शायद उनके पास हमारे घर की डुप्लीकेट चाभी हो... !” हां, ये हो सकता है।”
अमोल ने उत्तर ढिया जिनि की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। आज पहली बार अमोल उसकी किसी बात को माना था।उसने चहकते हुए कहा- “मेरे पास एक ऐसा आइडिया है, जिससे हम सांताक्लॉज को बड़ी आसानी से पकड़ सकते हैं...” “सच !”
अमोल खुश होते हुए बोला “हम दरवाजे के पास सब जगह गोंद गिरा देंगे ते सांताक्लॉज उसी में चिपककर खड़े हो जाएंगे।” शैतानी की बातों को अमोल तुरंत मान लेता था, इसलिए वह फौरन अपने कमरे की तरफ ढौड़ा और गोंद की सबसे बड़ी शीशी लाकर जिनि को पकड़ा दी।
जिनि ने शीशी क्रिसमस ट्री के पास रख ढी और बोली “हम इस दरवाज़े के पास एक ईंट भी रख देते हैं। जब सांताक्लॉज का पैर उससे टकराएगा तो वे घबराकर चिल्लाएंगे और हम झट से उन्हें पकड़ लेंगे। | “बड़ा मजा आएगा !”
जिनि खुशी के मारे चिल्लाई और सोफे पर कूद गई अमोल ने उसकी पीठ पर मुकक््का मारते हुए मे जार कोई दिन होता ते जल - “इतना क्यों चीख रही हो?” और कोई दिन होता तो जिनि उसे अच्छे से बताती पर आज वह पीठ झाड़कर ऐसे खड़ी होंगई मानो खड़ी हो गई मानो कुछ हुआ ही नहीं हो
बहुत इंतजार के बाद आखिर क्रिसमस की रात आ ही गई।
छोटे बच्चो के लिए कहानियां – Desi Kahani बच्चो के लिए और कहानी इन हिंदी
4. एक रुपए की बात नही :
बात कुछ दिनों पहले की है। एक सब्जी वाला, टमाटर की रेहड़ी लगाकर खड़ा था। वह बीस रुपए किलो टमाटर बेचरहा था। एक महिला ने एक किलो टमाटर लिए और सब्जी वाले को पांच सौ का नोट दिया।
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सब्जी वाले ने कहा, 'मेरे पास खुल्ले पैसे नहीं है, आप मुझे खुल्ले पैसे दे दो।' महिला ने एक दस का नोट, एक पांच का सिक्का और तीन दो-दो के सिक्के दिए। सब्जी वाले ने कहा 'यह तो इक्कीस रुपए हैं। यह दो का सिक्का आप रख लो, मेरे पास एक रुपया नहीं है।'
महिला ने अपने ईमान का दामन थामे रखा। कहा, 'मैं एक रुपया कम क्यों दूं?' सब्जी वाला भी एक रुपया ज्यादा लेने को तैयार नहीं था। वह महिला टमाटर लेकर चली गई। उस महिला के जाते ही सब्जा वाला दो का सिक्का पास ही बैठी वृद्ध भिखारी को देकर आ गया।
उसकी ईमानदारी और खुद्दारी को देखकर मैं चौंक गई। कुछ लोग किसी को हज़ारों, लाखों रुपए का धोखा देने से भी नहीं चूकते हैं और एक यह व्यक्ति मेरे सामने उदाहरण बनकर खड़ा था, जो किसी का एक रुपया भी अपने पास नहीं रखना चाहता था। वहीं वो ख़रीदार भी किसी का एक अतिरिक्त रुपया नहीं रखना चाहती थी।
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२. लालची किसान की देसी कहानी :
यूट्यूब वीडियो से देसीकहानी में आज हम आपके लिए लालची किसान की एक मजेदार कहानी लेकर आए हैं.
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आज की तीसरी अच्छी अच्छी कहानी है रेगिस्तान में पानी देखिए आखिर कैसे रेगिस्तान में पानी आ गया।
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