रामायण कथा हिंदी - रामायण हिंदी - रामायण की कहानी हमारी जुबानी [Part 2]

रामायण हिंदी - रामायण - रामायण कथा हिंदी - श्री रामायण - [Part 2]



जैसा की हमने इस लेख के [Part 1] में आपको रामायण की कहानी और रामायण कथा हिंदी में रामायण शुरू से लेकर अंत तक जिसमे रामायण ताड़का वध, सीता स्वयंवर रामायण और राम वनवास रामायण तक की कथा बता चुके थे. 


आगे इस लेख में आपको अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड और रामायण सुंदरकांड, रामायण लंका दहन, इस प्रकार सम्पूर्ण संपूर्ण रामायण 1961 (रामायण की कथा) के बारे में जानकारी देंगे. 


वैसे ही रामायण किसने लिखा (Ramayan Kisne Likhi Thi) और रामायण के रचयिता कौन है (Ramayan Ke Rachyita Kaun Hai) इन सवालो के जवाब भी इसमें दिए गए. 


उस रामायण कथा हिंदी - रामायण हिंदी [Part 1] को आप निचे लिंक पर जाकर देख सकते है. 





जैसा की हमारा आज का लेख Ramayan Ki Kahani का [Part 2]  में अपनी रामायण कथा हिंदी की यात्रा सुरु करते है......!



राम वनवास रामायण और रामायण सीता हरण की रामायण कथा हिंदी अरण्यकाण्ड में जानेंगे 



३. तृतीय काण्ड अरण्यकाण्ड : –



रामायण शुरूवसे अंत तक:– जैसे कि हमने आपको अयोध्या का आलम यह बताया है की भगवान श्री राम वनवास के लिए श्री वाल्मीकि जी के अनुसार चित्रकूट में निवास करने लगे थे।

 

रामायण-की-कथा
रामायण की कथा


कुछ वर्ष पश्चात श्री राम जी ने चित्रकूट छोड़ने का निर्णय किया , चित्रकूट के निकट महान ऋषि अत्री का आश्रम था। प्रभु श्री राम अत्रि ऋषि के आश्रम पहुंचे, राम के दर्शन पाकर अत्री ऋषि का जीवन धन्य हो उठा। अत्रि ऋषि की पत्नी अनसूया ने सीता जी को पातिव्रत धर्म (पति के प्रति होनेवाली पूर्ण निष्ठा भावना) , शिष्टतापूर्ण आचरण के मर्म समझाए। कुछ समय पश्चात अत्रि ऋषि श्री राम जी को शरभंग मुनि के पास लेकर पहुंचे । राम से भेट हेतु सदियों पूर्व शरभंग मुनि चित्रकूट में निवास करने लगे थे। राम के दर्शन की अभिलाषा पूर्ण हो जाने पर खुद की अग्नि आहुति देकर ब्रह्मलोक को चल दिए। 


रामायण-कथा-हिंदी
रामायण कथा हिंदी


ऋषि अत्री ने उसके बाद श्री राम जी को आगे बढ़ने की सलाह दी । अपना वनवास का जीवन काटते काटते प्रभु श्री राम जी अपने अगले मार्ग की ओर बढ़ रहे थे।


रास्ते में उन्हें अनेकों मनुष्य जानवरों की कंकाल एवं मृत शरीर के बचे हुए अंग नजर आने लगे जिसके बारे में पूछने पर अत्रि ऋषि ने उन्हें बताया कि यह सारे शरीर के कंकाल मुनियों के हैं , जो राक्षसों के भोजन बन गए।


इस घटना के बाद प्रभु श्री राम ने यह प्रण लिया कि वह धरती के सारे राक्षसों का वध (प्रतिघतन) करेंगे और धरती को निशाचर मुक्त करेगे के बाद प्रभु श्री राम, सीता माता और लक्ष्मण जी तीनो आगे बढ़े और पंथ नामक स्थान पर उनकी मुलाकात ऋषि अगस्त्य , सुतीक्ष्ण एव अनेक ऋषियों से भेट करते हुए यह सब दंडक वन पहुंचे। 



प्रश्न : दंडक वन क्या है और कहां है / स्थित है।

उतर : दंडक वन एक विशाल वन है। दण्डकारण्य (दण्डक + अरण्य = दण्डक वन) 

जो अभी वर्तमान में छत्तीसगढ़ ,आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और तेलंगाना मैं स्थित है। यह जंगल क्षेत्रफल के हिसाब से ९२,२०० स्क्वायर किलोमीटर जमीन में फैला है।



दंडक वन पहुंचकर प्रभु श्री राम की भेंट महान गरुड़ राज जटायु से हुई , जटायु ने प्रभु श्री राम को यह आश्वासन दिलाया कि वह माता सीता की सुरक्षा स्वय करेंगे। श्री राम ने ऋषि अगस्त्य से पंचवटी में आवास स्थापित करने का विचार किया। ऋषि ने राम को कई उपहार दिए जो उनके आने वाले वर्षों में मूल्यवान साबित होंगे। 


क्या आप सब जानते हैं की ऋषियों ने प्रभु श्री राम को उपहार में क्या दिया और अगर जानना चाहते हैं तो हमारे साथ बने रहे :–



प्रश्न : प्रभु श्री राम के वनवास के समय ऋषि यों ने उन्हें क्या उपहार दिया।

उतर : ऋषि यों ने श्री राम जी को एक धनुष दिया जो दिव्य शक्तियों के साथ भगवान विशु के लिए बनाया गया था, दूसरा तीरों का एक अटूट तरकश था और तीसरा एक विशेष तलवार थी जो राक्षसों को मारने में सक्षम थी ।



अब हम अरण्यकाण्ड में पंचवटी में घटी एक घटना के बारे में जानेंगे जहाँ राक्षसी शूर्पणखा पंचवटी में आई और राम से प्रेम करने लगी। उसने श्री राम से शादी करने की जिद की लेकिन राम जी उसे नकार दीये। दुर्भाग्य से, उसके बाद कुछ भयानक हुआ। 


रामायण-सीता-हरण
रामायण सीता हरण



प्रश्न : शूर्पणखा कौन थी। 

उतर : शूर्पणखा महान राजा विश्रवा और उनकी पत्नी कैकसी की प्रिय पुत्री थी और दुर्भाग्य वश रावण की बहन थी। 



शूर्पणखा को रामायण में सबसे महत्वपूर्ण पात्रों में से एक माना जाता है। वह वास्तव में, एक तीर थी जिसने घटनाओं की एक श्रृंखला को गति दी जिसके परिणामस्वरूप दानव दैत्य त्रिलोक विजयता रावण की मृत्यु हुई। 


शूर्पणखा उन राक्षसों में से एक थी जो कभी कभी जंगल में आते थे। अपनी अनेक यात्राओं में से एक के दौरान वह श्री राम से मिलीं और उसे तुरंत ही उनसे प्यार हो गया। शूर्पणखा असुर कुल की होने के वजह से वह मायावी थी ,माया शक्ति का उपयोग करते हुए, उसने खुद को एक सुंदर ( चित्ताकर्षक) रमणी के रूप में रूपांतर किया और राम के पास पहुंची।


उसने श्री राम जी से शादी करने का अनुरोध किया, लेकिन भगवान श्री राम की शादी पहले ही सीता माता के साथ हो चुकी थी। जैसे ही श्री राम ने शूर्पणखा का प्रस्ताव ठुकराया उसने तभी वह राम के साथ रहने के लिए सीता को नुकसान पहुंचाने की योजना बनाई। लक्ष्मण को शूर्पणखा की षड्यंत्र का एहसास हुआ, तो वे अपनी भाभी सीता के प्रतिरक्षण के लिए उन्होंने शूर्पणखा की नाक और कान काट दिया।


रामायण-सीता-हरण
रामायण सीता हरण


गुस्से में शूर्पणखा ने वन के दो भयावह असुर खर और दूषण से सहायता मांगी और वह फिर उनके सेना के साथ वापास लड़ने आयी। लेकिन आप को क्या लगता है की क्या हुआ होगा आगे


श्री राम और उनके भाई लक्ष्मण ने खर और दूषण की विशाल सेना का संहार कर दिया। 


अब क्या लगता है आपको शूर्पणखा अपनी दो दो हार के बाद क्या हुआ होगा क्या वह अपने इस दो दो हार को सहन कर पाएगी।


शूर्पणखा अपनी हार के बाद अपनी जान बचाते हुए , अपने बड़े भाई त्रिलोक विजायता लंकेश के पास पहुंची जो स्वर्णमोहित लंका के अधिपती थे । लंका राक्षसों का राज्य था और रावण लंका के राजा , वह सबसे शक्तिशाली , दस सर वाला रावण था । उनका वास्तविक नाम दशानन था, रावण के पिता एक ऋषि थे और वह ब्रह्मदेव के पोते थे जबकि उनकी मां एक राक्षस राजकुमारी कैकेसी थीं। 



प्रश्न : रावण कौन था और वह कहा का राजा था ।

उतर : लंकापति रावण चतुर्दश भवनों का अति भयंकर लंकेश्वर , दशकंठक रावण । सर्वत्र , सर्वोस्वंत्र प्रभुत रावाणा। ब्रह्मा देव के पोते के पुत्र और राक्षसों की रानी कैकेसी के प्रिय पुत्र । कहा जाता था कि रावण के शासन में लंका में एक भी व्यक्ति कभी भूखा नहीं रहेगा। उन्होंने सुनिश्चित किया कि लंका प्राचीन विश्व के महत्वपूर्ण व्यापारिक बंदरगाहों में से एक है। 


रामायण-कथा-हिंदी
रामायण कथा हिंदी


दशकंध रावण भगवान शिवजी के बहुत बड़े भक्त/अनुचर थे । उन्होंने एक बार शिवजी को प्रसन्न करने के लिए एक दुसाध्य यज्ञ किया । भगवान शिव के प्रति अपनी अटूट आस्था एवं श्रद्धा को साबित करने के लिए , रावण ने नर्मदा नदी के तट पर अपना मस्तिष्क काट लिया। 


ऐसा ही उसने दस बार किया अंततः शिवजी उसके भक्ति से प्रसन्न होकर उसे उसके दस सिर वापस दे दिए। भगवान शिव के अलावा, रावण ने ब्रह्मदेव की भी घोर तपस्या की और ब्रह्मदेव ने प्रदान होकर उन्हें यह वरदान दिया कि उनकी जीवन ज्योति उनकी पिंडिका में रहेगी । इस वरदान को पाने के बाद रावण अब अजय, पराक्रमी और शक्तिशाली राजा बना दिया ।


शूर्पणखा भागी भागी लंका पहुंची और पहुंच कर उसने अपने भाई रावण कोअयोध्या के दो युवा राजकुमारों के बारे में बताया। शूर्पणखा ने अपने भाई को देवी सीता के बारे में भी बताया, जिस कारणवश लक्ष्मण ने उसकी नाक और कान काट दी।


रावण और शूर्पणखा ने अयोध्या से तीन राजघरानों को राक्षस राजकुमारी की नाक काटने का सबक सिखाने का निर्णय किया । परिणामस्वरूप वे कुछ दिनों तक जंगल में उन पर नजर रखने लगे। उन्हे यह ज्ञात हो गया कि सीता झोपड़ी में अकेली रहती हैं, जब राम और लक्ष्मण शिकार करने ऐव भोजन का प्रबंध करने के लिए निकलते है।


शूर्पणखा के साथ हुई घटना के बाद, दोनो भाइयों ने अतिरिक्त सावधानी बरती और सीता को अकेला नहीं छोड़ा उनमें से एक समय में केवल एक ही जाता रावण ने अपमान का बदला लेने के लिए , दोनो भाईयो को ध्यान भटकने मारीच को एक स्वर्णीय मृग बनाकर भेजा। योजना के अनुसार वह ऐसा करने में सफल रहा।

रामायण-की-कथा
रामायण की कथा


माता सीता के कहने पर प्रभु श्री राम स्वर्ण मृग का आखेट करने वन में उसके पीछे चले गए। प्रभु श्री राम ने जैसे ही अपने बाण से मृग को मारा दुर्बाग्यवश मारीच अपने वास्तविक रूम में आकर श्री राम की आवाज मे लक्षमण चिलाने लगा। जिसके परिणाम स्वरूप लक्ष्मण और सीता माता जो कुटिया में थे उन्हें लगा कि श्रीराम मुसीबत में है और सीता देवी लक्ष्मण जी को उनकी सहायता के लिए अनुरोध करने लगती है । लक्ष्मण जी के लाख मना करने के बाद भी देवी सीता ने अपनी हठ नहीं छोड़ी। लक्ष्मण जी ने एक उपाय लगाया और अपनी शक्ति से कुटिया के चारों और एक लक्ष्मण रेखा खींच दी और सीता देवी से आग्रह किया की वह किसी भी हालत में लकीर के पार न जाए।


प्रश्न : लक्ष्मण जी ने सीता माता के कुटिया के चारों ओर रेखा क्यों खींच।

उतर : लक्ष्मण जी ने कुटिया के चारों ओर जादुई रेखा ताकि कोई दादा बेतिया जंगली जानवर कुटिया के निकट ना जा पाए और माता सीता सुरक्षित रहे।


फिर क्या था जैसे ही लक्ष्मण जी ने रेखा खींच कर अपने बड़े भाई राम के सहायता के लिए गए , उस वक्त मायावी रावण ने वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण करके कुटिया के निकट जा पहुंचा। भिक्षम देही का नारा लगाते हुए दो तीन बार कुटिया में घुसने का प्रयास किया लेकिन रेखा होने की वजह से वह विफल रहा। 

रामायण-सीता-हरण
रामायण सीता हरण


तब मायावी रावण ने तरकीब लगाई माता सीता का को अपनी बातों में फंसा कर रेखा के बाहर लाया और उनका छलपूर्वक हरण कर लिया । रावण ने सीता देवी को अपने पुष्पक विमान मे बैठाकर ले उड़ा।



 अन्य ख़बरें:– 



जैसे की जटायु ने श्री राम को वचन दिया था की वह स्वयं देवी सीता की रक्षा करेंगे इसलिए जैसे ही उनकी दृष्टि रावण के पुष्पक विमान में पड़ी और उनमें जटायु ने देवी सीता को देखकर वह रावण से युद्ध करने चले गए। रावण त्रिलोक विजयता उसने जटायु के पंख कटकर उन्हे अधमरा कर दिया।


शाम हुई वन से श्री राम और लक्ष्मण शिकार करके लौटे। कुटिया में सीता को न पाकर वह दोनो रघुवंशी अत्यंत दुखी हुए। दोनो ने सारे वन में सीता की खोज शुरू कर दी । खोज करते करते उन्हे जटायु अधमरे मिले । तब जटायु ने उन्हें अपनी दुर्दशा/दुर्गति और देवी सीता के अपहरण के बारे में बताया। जटायु गंभीर अवस्था में तड़प रहे थे बड़ी मुश्किल से श्री राम को यह बताया कि रावण देवी सीता को दक्षिण दिशा की ओर ले कर गया है। जटायु ने यह कहा कर अपने प्राण त्याग दिए, प्रभु प्रभु श्री राम और उनके छोटे भाई लक्ष्मण ने रिती पूर्वक जटायु का अंतिम संस्कार करके सीता की दक्षिण दिशा की ओर खोज जारी कि।


रामायण-शुरू-से
रामायण शुरू से


श्री राम सीता की खोज में गुंजन वन के मध्य भाग मे पहुंच गए , वहा उन्होंने महान ऋषि दुर्वासा के श्राप से राक्षस बने गन्धर्व कबन्ध ( गन्धर्व – एक प्रकार की पौराणिक देवता) ( कबन्ध – बिना सिर का धड़ ) का वध करके उसका उद्धार किया। श्री राम वहा से शबरी के आश्रम पहुंच कर उसकी भक्ति में दिए गए जूठे बेर ग्रहण किया। 


प्रभु श्री राम सीता की खोज में गुंजन वन के अंदर आगे बढ़ते गए।



इति श्रीमद्रामचरितामानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने तृतीय: सोपान: समापत: ।

अर्थ : कलयुग के संपूर्ण पापों को विध्वंस करने वाले श्रीरामचरित्रमानस का यह तीसरा स्वपान  



( अरण्यकाण्ड समाप्त )



हनुमान जी को प्रसन्न करने का मंत्र और हनुमान जी के सबसे शक्ति शाली मंत्र जाने क्या है 👇



रामायण राम वनवास और रामायण बाली का वध की रामायण कथा हिंदी किष्किन्धाकाण्ड में जानेंगे



४. चतुर्थः काण्ड किष्किन्धाकाण्ड :–


 

प्रभु श्री राम गुंजन वन के अंदर आगे बढ़ते हुए ऋष्यमूक पर्वत के निकट पहुंचे। उस पर्वत गिरी में किष्किंधा के सम्राट बाली के छोटे भाई सुग्रीव अपनी मंत्रीमंडल के साथ रहते थे । महाराज सुग्रीव इस आस में ऋष्यमूक गिरी कि कहीं बाली उन्हे मृत्यु दण्ड ना देदे।


प्रश्न : महाराज सुग्रीव किष्किंधा नगरी छोड़कर ऋष्यमूक पर्वत में छुप कर क्यों रह रहे थे।

उतर : कहा जाता है कि पौराणिक काल में किष्किंधा नगरी वानरों की नगरी के नाम से प्रसिद्ध थी । किष्किंधा के राजा बाली और उनके भाई सुग्रीव दोनों हमशक्ल थे। बाली ने ब्रह्मा देव की अटूट तपस्या करके यह वरदान प्राप्त किया कि युद्ध में जो उनका शत्रु होगा वहां उनकी आधी शक्तियां खींच लेंगे । जिस कारण वर्ष वह अजय बन चुके थे। 


एक दिन की बात है, एक महादानव किष्किंधा नगरी पहुंचकर बाली को युद्ध के लिए ललकार लगा । बाली में उसकी ललकार स्वीकार करके उसके साथ एक भीषण युद्ध किया युद्ध सालों साल चला। ब्रह्मा देव के वरदान के कारण बाली में शत्रु की आदि शक्तियां खींच ली जिस वजह से शत्रु उनके सामने कमजोर पड़ने लगा और वह डर के मारे एक गुफा में जा छिपा। बाली और सुग्रीव दोनों ने उसका पीछा किया और दोनों गुफा में घुस गए। लेकिन बाली ने सुग्रीव को गुफा के बाहर पहरेदारी करने का हुक्म दिया और यह कहा कि अगर मैं बाहर ना निकले तो गुफा के मुंह को बंद कर देना और स्वयं दानव के पीछे गुफा में चले गया। 


दिन बीतते गए, दिन हफ्तों में बदले हफ्ते महीनों में और महीने सालों में लेकिन ना तो गुफा के बाहर बाली आया ना ही वह दानव । एक सुबह सुग्रीव ने यह देखा की गुफा के अंदर से रक्त निकल रहा है। सुग्रीव ने अपने बड़े भाई भाई के कहे अनुसार गुफा का मुंह बंद कर दिया और वापस किष्किंधा नगरी लौट गए। राजा के बिना किष्किंधा नगरी बेजान होती जा रही थी इस वजह से वहां के मंत्रिमंडल ने निर्णय करके सुग्रीव का राज्य अभिषेक कर दिया।


दुर्भाग्यवश राज्य अभिषेक के कार्यक्रम के दौरान बाली वहां आ पहुंचा और उसने सुग्रीव को विश्वासघाट के जुर्म में देश निकाला की सजा सुना दी जिसके परिणाम स्वरूप सुग्रीव और उनकी मंत्रिमंडल ने किष्किंधा नगरी का पलायन करके ऋष्यमूक पर्वत को अपना नया ठिकाना बनाया।


महाराज सुग्रीव के जासूसों ने यह पता लगाया की दो मनुष्य ऋष्यमूक पर्वत में घुसे है । महाराज सुग्रीव ने हनुमान को यह परखने के लिए भेजा कि कहीं वह दोनों मनुष्य बाली के भेजे हुए तो नहीं। हनुमान जी ने एक वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण करके प्रभु श्री राम और उनके भाई लक्ष्मण के सामने पहुंच कर उन्हें परखने लगे , यह ज्ञात होने पर कि उन दोनों मनुष्य को बाली ने नहीं भेजा हनुमान जी ने सुग्रीव और प्रभु श्री राम की मित्रता करा दी। 


रामायण-की-कहानी
रामायण की कहानी


प्रश्न : हनुमान कौन है । 

उतर : हनुमान जी भगवान शिव के रुद्र अवतार है। पवन देव के पुत्र वायु पुत्र हनुमान जिनका जन्म भगवान शिव की सहायता के लिए हुआ है। वानर राज केसरी एवं माता अंजना के प्रिय पुत्र हनुमान। रामायण में भगवान श्री राम के प्रिय भक्त और लक्ष्मण जी के मित्र है हनुमान। बलियो के बली, महाबुद्धिमान ,वीर, पराक्रमी, वज्रदेह श्री हनुमान।


श्री-रामायण
श्री रामायण


सुग्रीव और श्री राम दोनों ने एक दूसरे की मदद करने का आश्वासन दिया। श्री राम ने सुग्रीव से बाली को जाकर युद्ध के लिए ललकार ने की सलाह दी , और युद्ध रणनीति बनाई। बाली ने श्री राम के कहे अनुसार किष्किंधा पहुंचकर बाली को युद्ध की चुनौती दी। बाली और सुग्रीव में भीषण युद्ध होने लगा, रणनीति के अनुसार प्रभु श्री राम दूर से बाली के ऊपर अपने बाणों से प्रहार करके सुग्रीव को युद्ध जीतते। लेकिन प्रभु श्री राम को यह ज्ञात नहीं था कि बाली और सुग्रीव दोनों एक जैसे दिखते हैं जिसके परिणाम स्वरूप उन्होंने निशाना नहीं लगाया। 


रामायण-इन-हिंदी
रामायण इन हिंदी


लक्ष्मण जी ने एक उपाय लगाया और सुग्रीव के गले में १ फूलों की माला डाल जिससे प्रभु श्री राम बाली और सुग्रीव मैं अंतर समझ पाए। उपाय के परिणाम स्वरूप श्री राम दूर से अपने बाणों से बाली का वध किया।


बड़ी धूमधाम से महाराज सुग्रीव का दोबारा किष्किंधा नगरी में राज्याभिषेक हुआ और बाली के पुत्र महाबली अंगद को राजकुमार का पद सौंपा गया। राज्य प्राप्ति की खुशी में महाराज सुग्रीव विलास में वर्षों तक लिप्त हो गए । प्रभु श्री राम सुग्रीव के इस घटना से अत्यंत क्रोधित हुए और उनके छोटे भाई लक्ष्मण ने सुग्रीव को युद्ध की चुनौती दे दी।


परिणाम स्वरूप महाराज सुग्रीव ने अपने वचन अनुसार चार दल बनाई और उन्हें देवी सीता की खोज में चारों दिशाओं में भेज दिया। चारों दलों का नेतृत्व महाराज सुग्रीव के सर्वश्रेष्ठ सिपाही कर रहे थे। जो दल दक्षिण दिशा की ओर खोज में बढ़ रहा था उसका नेतृत्व स्वयं महाबली श्री हनुमान, उनके साथ पराक्रमी वाली के पुत्र राजकुमार अंगद, विद्वान काका जाम्बवन्त और नील और नाल नामक दो वानर थे। 


दक्षिण दिशा की ओर सुग्रीव की सेना का नेतृत्व करते हुए हनुमान जी को एक गुफा में योगिनी तपस्वी से भेट हुई उन्होंने अपनी योगी शक्ति से समुद्र तट के निकट पहुंचा दिया। समुद्र तट पहुंचकर हनुमान जी और उनकी सीना की मुलाकात सम्पाती से हुई ।


प्रश्न : सम्पाती कौन है।

उतर : सम्पाती गरूड़ो के राजा अरुण के पुत्र एंव पक्षी राज जटायु के बड़े भाई है। 


सम्पाती ने अपनी दिव्या दृष्टि से वानरों की सेना को यहां बताया कि सीता माता रावण की लंका की अशोक वाटिका में है।


प्रश्न : अशोक वाटिका क्या है और कहा है।

उतर : अशोक वाटिका रावण के स्वर्ण लंका में स्थित सुरम्य वाटिका था , यहां रावण के अलावा किसी का भी प्रवेश वर्जित था। अशोक वाटिका में रावण अपनि सारी वामांगिनी को रखता था । यही पर रावण ने सीता देवी को कैद कर रखा था। अशोक वाटिका की पहरेदारी रावण की राक्षसी सेना स्वयं करती थी। 

रामायण-लंका-कांड
रामायण लंका कांड


जाम्बवन्त के कहने पर हनुमान जी ने समुद्र लांघने की सलाह दी, लेकिन उस समय तक हनुमान जी की सारी शक्तियां विकसित नहीं हुई थी इस वजह से वह इतनी लंबी दूरी कैसे तय करते। तब जाम्बवन्त ने हनुमान जी को ध्यान लगाके उनकी शक्तियों को याद दिलाया ।


प्रश्न : हनुमान जी की शक्तियां कैसे चली गई थी।

उतर : हनुमान जी बचपन में बहुत नटखट थे और अपनी शक्तियों पर उनका नियंत्रण नहीं था जिस वजह से उन्हें ऋषि भृगुवंशी ने श्राप दे दिया। और कहा जब तक तुम्हें तुम्हारी शक्तियों का याद ना दिलाएं तुम उनका प्रयोग नहीं कर पाओगे।


इति श्रीमद्रामचरितामानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने : चतुर्थः सोपान: समापत: ।

अर्थ : कलयुग के संपूर्ण पापों को विध्वंस करने वाले श्रीरामचरित्रमानस का यह चौथा स्वपान समाप्त हुआ। 



( किष्किन्धाकाण्ड समाप्त ) 



रामायण कथा हिंदी में सुंदरकांड रामायण - रामायण सुंदरकांड की कथा जानेंगे 



५. पञ्चन् काण्ड सुन्दरकाण्ड :–



हनुमान जी ने अपने पिता वायु देव को याद करके उनकी सहायता से छलांग लगाकर समुद्र लांघना शुरू किया। समुद्र की देवी सुरसा ने राह में हनुमान जी की परीक्षा ली। हनुमान जी को योग्य तथा सामर्थ्यवान पाकर देवी सुरसा ने उन्हें आशीर्वाद दीया। लंका के मार्ग में हनुमान जी ने समुद्र कि छाया राक्षसी का वध किया। 


प्रश्न : छाया राक्षसी कौन थी।

उतर : छाया राक्षसी लंका की रखवाली करने वाली एक असुर थी जो हनुमान जी से युद्ध रावण के प्रिय पुत्र मेघनाथ के कहने पर की थी। 


हनुमान जी ने अपनी शक्ति से लंकिनी द्वार तोड़कर लंका में प्रवेश किया। उनकी भेंट रावण के भाई विभीषण से हुई।


विभीषण भी श्री राम के भक्त और लंका के विद्वान नागरिक थे। विभीषण जी से वार्तालाप के बाद हनुमान जी अशोक वाटिका पहुंचे। जब हनुमान जी अशोक वाटिका पहुंचे तब रावण अपने पुष्पक विमान से अशोक वाटिका पहले ही पहुंचकर सीता देवी को धमका रहा था। हनुमान जी एक वानर के रूप में बदल कर एक वटवृक्ष में जा छिपे और वहां से उन्होंने रावण की सारी बातें सुनी। यह वही वटवृक्ष है जिसके नीचे देवी सीता अशोक वाटिका में रहा करती थी। रावण के जाने पर देवी सीता की सेविका त्रिजटा आकर उन्हें सान्त्वना दी।

रामायण-सुंदरकांड
रामायण सुंदरकांड


प्रश्न : त्रिजटा कौन है ।

उतर : त्रिजटा रावण के अशोक वाटिका के राक्षसी सेना की एक प्रमुख साध्वी एवं राक्षसी थी। रावण की पहली और प्रिय पत्नी मंदोदरी ने त्रिजटा को विशेष रूप से सीता की निगरानी के लिए सुपुर्द किया था। त्रिजटा एक राक्षसी होने के बाद भी देवी सीता की शुभचिंतक थी।


विथावान होने के बाद हनुमान जी ने देवी सीता से भेंट की और उन्हें प्रभु श्री राम की अंगुलिका दी , जिससे कि देवी सीता को श्रीराम के निकट होने का आश्वासन मिल सके।


हनुमान जी ने अपने विकराल रूप में आकर अशोक वाटिका विनाश करके रावण के छोटे पुत्र अक्षय कुमार का वध कर दिया। रावण अपने पुत्र के मृत्यु के बाद अपने प्रिय पुत्र मेघनाथ को अशोक वाटिका भेजा जहां पहुंचकर मेघनाथ ने हनुमान जी को नागपाश में बांधकर लंका ले आया। 


रामायण-सुंदरकांड
रामायण सुंदरकांड

सारी लंका मे हर्ष उल्लास का माहोल छा गया । सारे लंका वासी इस खुशी में रहते हैं कि उन्होंने अपने दुश्मन के दूत को बंधक बना लिया है। लंका के राजा दसाशन ने हुनमान जी से उनका परिचय पूछा । हनुमान जी ने अपने पूछ की एक गोलाकार कुंडली बनाकर , उसके ऊपर बैठकर अपना परिचय देते हैं। मैं श्री राम दूत हनुमान कहा संबोधित करते हुए देते है। रावण हनुमान जी की बातें सुनकर क्रोधित होता है और अपने सैनिकों को हनुमान जी के पूंछ में आग लगाने का आदेश दे देता है। रावण के सैनिक तेल में डूबा हुआ कपड़ा लाकर उसे हनुमान जी के पूछने बांधकर उसमें आग लगा देते है । हनुमान जी पूछ मे लगी हुई आग का ही उपयोग करके सारी लंका भीषण आग लगा देते जिससे लंका दहन हो जाता है। 


सुंदरकांड-रामायण
सुंदरकांड रामायण


लंका दहन के बाद श्री हनुमान जी माता सीता के पास जाकर उनसे आशीर्वाद लेकर  लोटन की तैयारी करते ही रहते हैं, उसी क्षण माता सीता श्री राम के लिए अपनी चूड़ामणि देती है, उसे लेकर हनुमान वापस लौट जाते है।


रामायण-सुंदरकांड
रामायण सुंदरकांड


हनुमान जी वापस तट पर पहुंचकर अपने वानर साथियों से मिलकर बाहर से किष्किंधा की ओर लौट जाते हैं। किष्किंधा लौटकर हनुमान जी माता सीता का दिया हुआ चूड़ामणि प्रभु श्री राम को सौप देते हैं। श्री राम चूड़ामणि मैं सीता की झलक पाकर अत्यंत प्रश्न होकर लंका की ओर संपूर्ण वानर सेना के साथ निकल पड़ते है।


दूसरी तरफ लंका मे विभीषण अपने भाई रावण को समझाया कि वह श्रीराम से वैर / दुर्भाव ना ले और यह भी समझाया कि श्री राम स्वयं त्रिलोक लोकस्वामी विष्णु के पूर्ण अवतार है। तुमने श्री राम की पत्नी सीता यानी की श्री विष्णु जी की पत्नी माता लक्ष्मी को बंधक बना रखा है तुम उन्हें श्री राम को सौप दो वह करुणानिधान दयासिंधु परमेश्वर है वह तुम्हे अवश्य माफ कर देंगे। 

रावण के ना माने और विभीषण को कापुरुष कहने पर विभीषण में अपने मंत्रियों के साथ लंका छोड़ने का निर्णय किया और प्रभु राम की शरण में जाकर उनका साथ देने का निश्चय किया।


श्री राम ने विभीषण को लंका मैं विजय पाकर राजा बनने का वचन दिया । महाराज सुग्रीव की वानर सेना के साथ श्री राम , लक्ष्मण, हनुमान , जामवंत और अन्य विद्वान समुद्र तट पर पहुंचे। श्री राम के समक्ष अपने सेना को समुद्र पार कराने की समस्या उत्पन्न हो उठी। 


श्री राम ने समुद्र में सेतु बनाने के लिए समुद्र देव की आराधना की। समुद्र के ना मानने पर आक्रोश मे अपने कोदंड धनुष की चाप ठान ली। समुद्र देव भयभीत होकर प्रभु श्री राम के समक्ष प्रकट हुए और उन्हें सेतु बनाने में पूरी सहायता देने का वचन दिया।


प्रश्न : श्री राम के धनुष का क्या नाम था।

उतर : संसार में यह तो सब ही जानते है की श्री राम एक धनुषधारी है लेकिन यह बहुत कम ही लोग जानते हैं की प्रभु श्री राम के धनुष का नाम कोदंड था। श्री राम को इस वजह से ही कोदंड कहा जाता है। कोदंड का अर्थ सामान्य बस से निर्मित । कोदंड धनुष एक अति चमत्कारी धनुष था, जिसे हर कोई नहीं उठा सकता था।


रामायण-की-कथा
रामायण की कथा

नील और नर नामक सुग्रीव की सेना के दो वानर बड़े-बड़े चट्टानों में श्री राम का नाम लिखकर उसे समुद्र में फेंकने लगे। श्री राम का नाम लिखा होने की वजह से विशाल चट्टान तरने लगे। जाम्बवन्त के आदेश से नील और नर चट्टानों में राम नाम लिखकर पानी में डालते गए । सेतु का संपूर्ण निर्माण होने के पश्चात श्री राम भगवान शिव की एक शिवलिंग बनाकर की आराधना की । 

रामायण-जी
रामायण जी


प्रश्न : श्रीराम द्वारा बनाए गए शिवलिंग का नाम।

उतर : श्रीराम द्वारा बनाए हुए शिवलिंग का नाम रामेश्वरम शिवलिंग है। रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग संपूर्ण रुप से भगवान शंकर को समर्पित है। जो अभी वर्तमान में रामेश्वरम ज्योर्तिलिंग धाम के नाम से प्रसिद्ध है। वर्तमान में रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग भारत के राज्य तमिल नाडु मैं स्थित है।



इति श्रीमद्रामचरितामानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने : पञ्चन् सोपान: समापत: ।

अर्थ : कलयुग के संपूर्ण पापों को विध्वंस करने वाले श्रीरामचरित्रमानस का यह पांचवा स्वपान समाप्त हुआ। 



( सुन्दरकाण्ड समाप्त )


अन्य : राम लक्ष्मण की 10 कहानी 



रामायण शुरू से अंत तक – संपूर्ण रामायण कथा १० मीन. मे – Youtube video 




अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड और सुन्दरकाण्ड के बारे में पूछे जाने वाले सवाल - Frequently Asked Questions About AranyaKand, KishkindhaKand and Sundarkand 



प्रश्न क्र 1 : दंडक वन क्या है और कहां है / स्थित है।

उतर : दंडक वन एक विशाल वन है। दण्डकारण्य (दण्डक + अरण्य = दण्डक वन) 

जो अभी वर्तमान में छत्तीसगढ़ ,आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और तेलंगाना मैं स्थित है। यह जंगल क्षेत्रफल के हिसाब से ९२,२०० स्क्वायर किलोमीटर जमीन में फैला है।


प्रश्न क्र 2 : प्रभु श्री राम के वनवास के समय ऋषि यों ने उन्हें क्या उपहार दिया।

उतर : ऋषि यों ने श्री राम जी को एक धनुष दिया जो दिव्य शक्तियों के साथ भगवान विशु के लिए बनाया गया था, दूसरा तीरों का एक अटूट तरकश था और तीसरा एक विशेष तलवार थी जो राक्षसों को मारने में सक्षम थी ।


प्रश्न क्र 3: शूर्पणखा कौन थी। 

उतर : शूर्पणखा महान राजा विश्रवा और उनकी पत्नी कैकसी की प्रिय पुत्री थी और दुर्भाग्य वश रावण की बहन थी। 


प्रश्न क्र 4: रावण कौन था और वह कहा का राजा था ।

उतर : लंकापति रावण चतुर्दश भवनों का अति भयंकर लंकेश्वर , दशकंठक रावण । सर्वत्र , सर्वोस्वंत्र प्रभुत रावाणा। ब्रह्मा देव के पोते के पुत्र और राक्षसों की रानी कैकेसी के प्रिय पुत्र । कहा जाता था कि रावण के शासन में लंका में एक भी व्यक्ति कभी भूखा नहीं रहेगा। उन्होंने सुनिश्चित किया कि लंका प्राचीन विश्व के महत्वपूर्ण व्यापारिक बंदरगाहों में से एक है। 


प्रश्न क्र 5: लक्ष्मण जी ने सीता माता के कुटिया के चारों ओर रेखा क्यों खींच।

उतर : लक्ष्मण जी ने कुटिया के चारों ओर जादुई रेखा ताकि कोई दादा बेतिया जंगली जानवर कुटिया के निकट ना जा पाए और माता सीता सुरक्षित रहे।


प्रश्न क्र 6: महाराज सुग्रीव किष्किंधा नगरी छोड़कर ऋष्यमूक पर्वत में छुप कर क्यों रह रहे थे।

उतर : कहा जाता है कि पौराणिक काल में किष्किंधा नगरी वानरों की नगरी के नाम से प्रसिद्ध थी । किष्किंधा के राजा बाली और उनके भाई सुग्रीव दोनों हमशक्ल थे। बाली ने ब्रह्मा देव की अटूट तपस्या करके यह वरदान प्राप्त किया कि युद्ध में जो उनका शत्रु होगा वहां उनकी आधी शक्तियां खींच लेंगे । जिस कारण वर्ष वह अजय बन चुके थे। 


प्रश्न क्र 7: हनुमान कौन है । 

उतर : हनुमान जी भगवान शिव के रुद्र अवतार है। पवन देव के पुत्र वायु पुत्र हनुमान जिनका जन्म भगवान शिव की सहायता के लिए हुआ है। वानर राज केसरी एवं माता अंजना के प्रिय पुत्र हनुमान। रामायण में भगवान श्री राम के प्रिय भक्त और लक्ष्मण जी के मित्र है हनुमान। बलियो के बली, महाबुद्धिमान ,वीर, पराक्रमी, वज्रदेह श्री हनुमान।


प्रश्न क्र 8 : सम्पाती कौन है।

उतर : सम्पाती गरूड़ो के राजा अरुण के पुत्र एंव पक्षी राज जटायु के बड़े भाई है। 


प्रश्न क्र 9 : अशोक वाटिका क्या है और कहा है।

उतर : अशोक वाटिका रावण के स्वर्ण लंका में स्थित सुरम्य वाटिका था , यहां रावण के अलावा किसी का भी प्रवेश वर्जित था। अशोक वाटिका में रावण अपनि सारी वामांगिनी को रखता था । यही पर रावण ने सीता देवी को कैद कर रखा था। अशोक वाटिका की पहरेदारी रावण की राक्षसी सेना स्वयं करती थी। 


प्रश्न क्र 10 : हनुमान जी की शक्तियां कैसे चली गई थी।

उतर : हनुमान जी बचपन में बहुत नटखट थे और अपनी शक्तियों पर उनका नियंत्रण नहीं था जिस वजह से उन्हें ऋषि भृगुवंशी ने श्राप दे दिया। और कहा जब तक तुम्हें तुम्हारी शक्तियों का याद ना दिलाएं तुम उनका प्रयोग नहीं कर पाओगे।


प्रश्न क्र 11 : छाया राक्षसी कौन थी।

उतर : छाया राक्षसी लंका की रखवाली करने वाली एक असुर थी जो हनुमान जी से युद्ध रावण के प्रिय पुत्र मेघनाथ के कहने पर की थी। 


प्रश्न क्र 12 : त्रिजटा कौन है ।

उतर : त्रिजटा रावण के अशोक वाटिका के राक्षसी सेना की एक प्रमुख साध्वी एवं राक्षसी थी। रावण की पहली और प्रिय पत्नी मंदोदरी ने त्रिजटा को विशेष रूप से सीता की निगरानी के लिए सुपुर्द किया था। त्रिजटा एक राक्षसी होने के बाद भी देवी सीता की शुभचिंतक थी।


प्रश्न क्र 13 : श्री राम के धनुष का क्या नाम था।

उतर : संसार में यह तो सब ही जानते है की श्री राम एक धनुषधारी है लेकिन यह बहुत कम ही लोग जानते हैं की प्रभु श्री राम के धनुष का नाम कोदंड था। श्री राम को इस वजह से ही कोदंड कहा जाता है। कोदंड का अर्थ सामान्य बस से निर्मित । कोदंड धनुष एक अति चमत्कारी धनुष था, जिसे हर कोई नहीं उठा सकता था।


प्रश्न क्र 14 : श्रीराम द्वारा बनाए गए शिवलिंग का नाम।

उतर : श्रीराम द्वारा बनाए हुए शिवलिंग का नाम रामेश्वरम शिवलिंग है। रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग संपूर्ण रुप से भगवान शंकर को समर्पित है। जो अभी वर्तमान में रामेश्वरम ज्योर्तिलिंग धाम के नाम से प्रसिद्ध है। वर्तमान में रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग भारत के राज्य तमिलनाडु मैं स्थित है।



उपरोक्त रामायण की कहानी में आपको श्री रामायण के अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड और सुन्दरकाण्ड की कथा बतायी गयी है और शब्दसीमा को ध्यान में रखकर आगे के अध्याय जिसमे लंकाकाण्ड और उतरकाण्ड की रामायण कथा आपको हमारे आगे के पोस्ट में बताएँगे. जिसे आप यहाँ से देख सकते है. Click Here 👈



रामायण की कथा निष्कर्ष :- 


आज के लेख रामायण की कहानी और रामायण कथा हिंदी में आपको रामायण शुरू से लेकर अंत तक बताने के साथ ही अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड और सुन्दरकाण्ड की कहानी में रामायण सुंदरकांड तक की कथा को बताया गया है. 

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